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________________ यह कितना और कैसा हानिलाभकर्ता है यह वैराग्यके विषय में अत्यन्त उत्तमरूपसे बतलाया हुआ होता है । इनके प्रेमादिभाव पर आतरिक्त मन और कर्मग्रहणका सम्बन्ध, चित्त. विचार. दमनकी आवश्यकता, उससे होनेवाला महान् लाभ कषायोंका स्वरूप, विषयप्रमाद आदिकी रचना आदि अनेक विषयोंका वर्णन किया जाता है । इन सबका एक ही हेतु है और वह यह है कि वस्तुस्वरूपको ठीक ठीक समझ कर स्ववस्तुपर द्रढलक्ष्य रखना और उसको प्रगट करनेका प्रयास करना तथा साथही साथ परवस्तुका स्वरूप समझकर उसका हो सके उतने प्रमाण में त्याग करना और न होसके उसके लिये विचार कर योग्य प्रयास करना और शनैःशनैः उसका भी परित्याग करना। वैराग्य के. विषयका यह हेतु है, यह उसका लक्षण है, और यह उसका अन्तिम साध्य है । इस विषयकी पुष्टि करनेमें और अन्तिम सांध्य प्राप्त करनेकी शिक्षा देते समय दूसरी अनेक प्रकारकी व्य. वहारीक और धार्मिक शिक्षाये अपने आप आजाती है। वैराग्यका विषय इतना विस्तृत होता है कि इसका सम्बन्ध हमारे जीवनके छोटे बड़े सर्व विषयोंके साथ होता है। इसी कारण इस विषयकी अत्यन्त विशालता है । एक बात बहुत ध्यान देने योग्य है और वह अनुभवहीसे समझमें आ सकती है । वह यह है कि वैराग्यके किसी भी विषयपर विचार करते समय अन्तरआत्माको जो प्रान्नद होता है वह अपूर्व ही है और उससे यह जान पड़ता है कि आत्मा की प्राप्तव्य स्थिति तो यह ही है । एकमात्र प्रकृति संबन्धके कारण यह जीव दूसरी स्थितियोंका अनुभव करता है और कभी कभी परवस्तुके सम्बन्धसे प्रानंद मानता है । हम एक बातका विचार करते हुए दुविधामें पड़े हों और उस बातका निर्णय हो जाय, एक गणितका कठिन प्रश्न निकालते हो और उसका उत्तर मिल जाय, एक पुस्तक पढ़ते हो और उसमेंसे किसी महान् सत्यकी प्राप्ति हो जाय अथवा जानाजावे उस समय बड़ा आनंद होता है और सुखकी प्राप्ति होती है यह स्थिति ठीक ठीक समझने योग्य है, इसको अात्मिक सन्तोष ( Consceious satisfaction ) कहते हैं। इस स्थितिको प्राप्त करना वैराग्यके विषयका साध्य है और सदैवके लिये (अविनाशी दशा) प्राप्त करना यह परम साध्यहै। इस कारणके लिये
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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