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________________ अधिकार ] गुरुशुद्धिः . [६३ होती है । उसको तो तू यहाँ नष्ट कर देता है, ऊलटा उसके स्थानमें पापरूप कूड़ा करकट इकट्ठा करता है । फिर तू सुखकिसप्रकार प्राप्त करनेकी अभिलाषा रखता है ? सुख धर्मकिया किये बिना मुफ्तमें नहीं मिल सकता है । इसलिये किसी भी कार्यके करते समय इतना विचार अवश्य करे कि शुभ कार्य करनेसे भविष्य भवमें सुख मिलता है और अशुभ कार्य करनेसे दुःखकी प्राप्ति होती है । अपि तु व्यर्थ पापकर्म करनेसे तो इस जीवको कभी भी सुख नहीं मिल सकता है । इतनी समझ रखनेसे और इसे प्रवृत्तिमें लानेसे तेरे कितने ही दुर्गुण दूर हो जायेंगे । धर्मश्रवणकी बहुत आवश्यकता है । पहले कहे अनुसार बिना विचारके आचरण नहीं हो सकता है, परन्तु विचारों को शुभ बनाने के लिये शास्त्रश्रवणकी बहुत आवश्यकता है । श्रवणपरसे मनन करनेकी भी उतनी ही आवश्यकता है। यह श्लोक बहुत उपयोगी है । मोक्षप्राप्ति के अभिलाषियोंको प्रारम्भमें ही निम्नलिखित नियमानुसार आचरण करना चाहिये । १. भक्तिपूर्वक प्रभुका पूजन करना । २. धर्मश्रवण सदैव सद्गुरुसे करना । ३. स्थूल विषयोंसे दूर रहकर जहाँतक हो सके उनके त्याग ___ करनेका प्रयास करना । ४. प्रयोजन हो या न हो परन्तु पापकार्योंको न करना । _सुगुरु सिंह, कुगुरु सियार. चतुष्पदैः सिंह इव स्वजात्यै मिलन्निमांस्तारयतीह कश्चित् । सहैव तैमजति कोऽपि दुर्गे, . शृगालवच्चेत्यमिलन् वरं सः ॥१४॥
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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