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________________ ४५० ] अध्यात्मकल्पलुम [द्वादश धर्माध्यक्षोंका कर्त्तव्य इस जमानेमें अधिक है। पाश्चात्य विचारोंका गहरा प्रवाह, केन्ट कमप्ट आदि नवीन तत्त्वज्ञोंका स्थूल तत्त्ववाद( Materialism )के उल्लेख, मील आदि अर्थशास्त्रियों के स्वतंत्र लेख, पूर्व के दृढ़ संस्कारोंका दृढ़ संगम और आसपासके वायुमण्डलसे होनेवाला महान फेरफारको ध्यानमें रखकर अभी किसकी आवश्यकता है इसका अभ्यास करना चाहिये, इसका चिन्तन करना तथा स्वशति अनुसार इसको पूरे करनेका प्रयास करना प्रत्येक धर्माध्यक्षका मुख्य कर्तव्य है। विशेषतया शक्तिका व्यर्थ व्यय, वितंडावाद और कलह-कुसंपको हटाकर सम्बद्धबद्ध होकर शासनको बनाये रखने के प्रयास करने की अभी अत्यन्त आवश्यकता है । यह सब कार्य उनका है, उनके करनेका है, इसके स्थानमें विपरीत आचरणकर यदि यहां दिये हुए उपनामको सार्थक बनायेगें तो यह निश्चय समझे कि भविष्यमें बहुत चिन्ता करनी पड़ेगी। कोम्पट और हेगलका स्थूलवाद बहुत आकर्षक है और उसमें फिलोसोफर हर्बर्ट स्पेन्सरने बहुत बढ़ोतरी की है । यह पाश्चात्य फिलासफी कालिजमें सिखाई जाती है और नवीन प्रजा उसका मन लगाकर अभ्यास करती है । इस नवीन फिलासफीमें पुद्गल ( Matter )को बहुत प्रधान्यता दी गई है । विशेष खूबीकी बात तो यह है कि जैन तत्त्वज्ञानको जो यदि इस नवीन फिलासफीके प्रकाशके साथ रखकर समझाया जाय तो सब हकीकत साफ हो जाती है। प्रो० हर्मन जेकोषि जिन्होंने जैन तत्त्वज्ञानका बहुत अभ्यास किया है वे कहते हैं कि कॅन्टकी फिलासफीके बहुत-से तत्त्व जैन तत्त्वज्ञानसे मिलते हैं। अलबत्त, पात्मवाद, आत्मकर्म सम्बन्ध, मात्माका विकासकर्म आदि भाव जैन तत्त्वज्ञानमें विशेषरूपसे हैं और पुद्गलका जो अद्भुत स्वरूप बांधा है वह नवीन फिला.
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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