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________________ अधिकार] गुशुद्धिः परन्तु पापी दृष्टिराय ले सानं पुरुषों को भी दुरुच्छेद है (प्रत्यक कठिनतासे काटे जानेवाला है) इस प्रयोजनसे यह बात बारम्बार कही गई है । दृष्टिरागका यह मतलब कदापि नहीं है कि किसी व्यक्तिको देखकर उसपर राग हो जाय, परन्तु मिथ्यात्व. जन्य मोहनीयकर्मके उदयसे होनेवाला अस्वाभाविक प्रेम समझना चाहिये। ___ इस विषयमें एक भावश्यक बातपर विशेष ध्यान देना चाहिये । जैनशास्त्रकार विना विचार अन्धश्रद्धासे धर्म कबूल करनेका आग्रह किसी स्थानपर नहीं करते हैं। बारम्बार स्पष्ट कहते है कि तुम विचार करो, तपास करो, मनन करो, तजवीज करो, मिलान करो; यदि तुमको न्यायशास्त्र सामान्य ज्ञानसे तुलनाशक्ति और उसके परिणाममें होनेवाली निश्चयपद्धति ( Power of independent judgement ) प्राप्त हुई हो तो इसको उचित अवकाश दो; अन्य धर्मोंकी बराबरीमें जो तुमको जैनतत्त्वज्ञानमें कुछ अपूर्व वस्तुस्वरूप और परस्पर विरोधका अभाव जान पड़े तो यहां जो कहाँ जाता है उसका आदर कसे। जैनशास्त्रकार कभी भी नहीं कहते हैं कि " अतीन्द्रियास्तु ये भाबा, न तास्तर्केण योजयेत् ।" अतीन्द्रिय विषयों में तर्क न करना । ये वचन किसके हो सकते हैं यह विचारने योग्य है। जो शास्त्र न्यायकी उच्च कोटीयों पर रचा हुआ हो उसमें ऐसा मनुष्य बुद्धि के विपरीत, उसकी अवगणना करनेवाला, उनको खिलते ही मसोस देनेवाला विचार बतानेकी आवश्यकता नहीं होती है। इसके साथ ही साथ यह भी ध्यान रखे कि प्रत्येक फिलासफीका तर्क ( reason ) पर ही आधार होता है और इसप्रकार भाधारित हो उसे ही फिलासफी कह सकते हैं। धर्म ( religion ) में श्रद्धा ( faith ) का अंश विशेषतया होता है वैसे फिलासफीमें
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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