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________________ अथ द्वादशः देवगुरुधर्मशुद्धयाधिकारः रखें अधिकारमें यह बताया गया था कि धर्मशुद्धि कैसी रखनी चाहिये ? इस धर्मको बतानेवाले, पहचान करानेवाले श्री गुरुमहाराज हैं और उस MOLANA धर्मको कहनेवाले तीर्थकरदेव हैं। उनकी माझा और पुष्टासम्बनरूप भावना ( Ideal ) मिलनेसे जीव उनके समान होनेका यत्न करता है और हो भी सकता है। यहां तीर्थकरदेवसे कहे हुए धर्मको बतलानेवाले गुरु हैं । वे गुरु-नेता कैसे होने चाहिये इसके विचारनेकी अत्यन्त आवश्यकता है और इसी विषयको लेकर यह अधिकार लिखा गया है। धर्मशुद्धिपर ग्यारवाँ अधिकार लिखा गया है, परन्तु वहाँ जो शुद्धि बताई गई है वह शुद्ध धर्मको मलिनता न लगने देनेकी है और उसमें यह बतलाया गया है कि शुद्ध धर्ममें कौन कौन-सी मलिनताके आजानेसे वह खराब हो जाता है । यहाँ पर यह बताया गया है कि षड्दर्शनमें से कौन-सा दर्शन स्वीकार करने योग्य है इसमें पुनरुक्ति दोषकी सम्भावना नहीं है। सब वातका आधार इसपर होते हुए प्रकाशपर पड़ता है इसलिये प्रकाश करनेवाला कोन है इसपर भी बड़ा प्राधार है । परभव, व्यवहार, निश्चय, शुद्धि भादिपर प्रकाश डालनेवाला कैसा होना चाहिये इसका हम अब विचार करेगें । इस बाबतमें दृष्टिरागका बहुत जोर रहता है इसलिये उस कमजोरीको हटाकर निम्नलिखित बातोंपर ध्यान खिंचा जाता है।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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