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________________ अधिकार धर्मशुद्धिः [४२७ गुणपर मत्सर करनेवाला-उसकी गति. तपः क्रियावश्यकदानपूजनैः, शिवं न गन्ता गुणमत्सरी जनः । अपथ्यभोजी न निरामयो भवे, द्रसायनैरप्यतुलैर्यदातुरः ॥ ११ ॥ " गुणपर मत्सर करनेवाला प्राणी तपश्चर्या, भावश्यक क्रिया, दान और पूजासे मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता है; जिसप्रकार व्याधिग्रस्त पुरुष यदि अपथ्ये भोजन करता हो तो वह फिर चाहे जितनी भी रसायण क्यों न खावे परन्तु वह स्वस्थ नहीं हो सकता।" वंशस्थविल. विवेचन-जिसप्रकार अपने सुकृत्योंकी स्तुति सुननेकी इच्छा रखना धर्मशुद्धिमें मलरूप है, उसीप्रकार दुसरोंके उत्तम गुणोंकी और इर्षा-द्वेष करना भी मलरूप है। दूसरोंसे मत्सर करनेवाले पुरुष चाहे जितने धर्मकार्य करे, छठ्ठ, अठुम करे, योग उपधान करे, प्रतिक्रमण पञ्चक्खाण आदि आवश्यक क्रियाएँ करे अथवा पांच प्रकारके दान दे, या महाभाडम्बरसे अष्ट, सत्तर, इक्कीस या एकसौ आठ प्रकारकी पूजा रचावे; परन्तु वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते । जिसप्रकार व्याधिग्रस्त प्राणी पथ्य न रक्खे और खांड खटाश, वर्ण्य होनेपर भी गुप्तरूपसे खाता रहे, तो फिर उसे तुम चाहे पंचामृत्त, परपटी, वसन्तमालती या गजवेल खिलावो तो भी उसको लाभ न होगा, इसीप्रकार तप, क्रिया, दान आदि रसायण है, उनके साथ भी यदि गुणके मत्सररूप अपथ्य भोजन किया जावे तो फिर शिवगमनरूप निरोगीपन इस जीवरूप व्याधिनस्त प्राणीको प्राप्त नहीं हो सकता है। इसप्रकार दृष्टान्त दाष्टान्तिक योजना समझे। '
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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