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________________ होगी?" अधिकार] वैराग्योपदेशाधिकारः [ ३९९ नहीं जानता कि पुण्य बिना भविष्यमें तेरी क्या दशा अनुष्टुप्. . विवेचन हे भाई ! तू सुखासनके सिंहासनपर निर्भयतापूर्वक बैठता है, विलायती पलंगोपर सुन्दर चादरे बिछाकर सोता है, जीभको अच्छे लगनेवाले भक्ष्याभक्ष्य पदार्थोंको खाता है, मदिरापान करता है और ऐरेटेड वाटरके अपेय पदार्थोके गिलासके ग्लास गलेमें उड़ेलता है, उसीप्रकार अनेकों क्रीड़ाये करता है; परन्तु तू विचार तो कर कि ये सब पुण्यके प्रतापसे है। तेरा ग्राममेंसे कर्जा वसूल करना है और वह कर्जा वसूल होता जाता है किन्तु मिली हुई पैतृकसम्पत्ति कम होती जाती है, धन कम होता जाता है अर्थात् पुण्य-धन नष्ट होता जाता है । अब इस समय तो तू कुछ भी धन एकत्र करके नहीं रखता है, तो फिर भविष्यमें तेरी क्या दशा होगी ? मुझे तो तेरे लिये चिन्ता होती है किन्तु तू तो विचार भी नहीं करता है।। जिसको यहां सुख, भोग, वैभव, संपत्ति, आरोग्यता प्राप्त हुई हों उसका संसारमें लिपटना एकत्र की हूइ सम्पत्तिको उड़ादेने जैसा है; और वैभव आरोग्यता बिना संसारमें लिपटना तो तद्दन मजूरी करने के समान है, निष्फल है, और कोई समझहार पुरुष तो ऐसा करनेके लिये सम्मति भी नहीं दे सकता है। भर्तृहरिने एक स्थानपर कहाँ है कि " मुहके सामने गुणगान किया जाता हो, पासमें कविलोग बिरुदावली बोलते हों, आसपास चंबर दुलते हो और सिरपर सेवक छत्र धर रहे हो-ऐसा यदि तेरे हो और फिर तू संसाररसका स्वाद चखनेकी अभिलाषा करे तो कुछ उचित भी जान पड़ती है।" ऐसा तो तेरे पास कुछ भी नहीं है, इसलिये तुझे संसारमें न लिपटना चाहिये । तेरी दशा वो व्यवहारमें जैसी कहावत है कि " न मिला राम न मिली
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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