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________________ अधिकार ] बैराग्योपदेशाधिकारः (३८१ उसमें डूब कर मरजाता है। चचुरिन्द्रय के वशीभूत होनेसे यह मरणदुःख हुआ। . २ भ्रमर-सुगंधीके मोहसे सन्ध्याकालतक भ्रमर कमलमें बैठा रहता है और उसमें मस्त होजाता हैं, सायंकालको जब कमल बन्द होने लगता है तब भी विचार करता है कि"उड़ता हूँ" "उड़ता हूँ" इतनेमें कमल बन्द होजाता है, फिर वह नहीं निकल सकता है और सम्पूर्ण रात्रिभर बन्दि बना रहता है। इसपर भी प्रातःकाल होने पर जो हाथी आता है वह कमल को उखाड़ कर भक्षण कर जाता है इससे भ्रमरकी उसीके अन्तर मृत्यु होजाती है। हाथीके गंडस्थलोमेंसे मद् टपकता रहता है उसकी सुगन्धीसे आकर्षित होकर हाथीके मस्तकके आसपास भ्रमर गुंजार करते हैं । हाथी कान फड़फड़ाता रहता है जिसके सपाटेमें आनेसे कितने ही भ्रमर मृत्युके शिकार होते हैं। यह नासिकाइन्द्रियके वशीभूत होनेका दुःख है। ३ हिरन:-जब हिरनको झालमें फसाना होता है तब पारधी सुन्दर बीणासे मधुर गायन करता है, जिसको सुनकर अटवीके हिरण अपने आप खिंचे चले आते हैं। उन बेचारोंको यह भान नहीं रहता कि सुनने जानेसे अपने प्राणोंकी आहुति देनी पड़ेगी । उस समय पारधी अपनी फैलाई हुई मालको एकत्र कर लेता है, और भोला मृग उसका शिकार होजाता है। यह श्रवणइन्द्रियके वशीभूत होनेका दुःख है । ४ पची:-नीचे गेहूँ, ज्वार, बाजरी आदि अनाज विस्तार कर उसपर झाल फैलाकर पारधी दूर छिप कर बैठ जाते हैं। अनाजके लोभसे भोले कबूतर और अन्य दूसरे पक्षी ललचाते हैं और अन्न खानेको जानेपर मालमें फँस जाते हैं । फसनेवाले
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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