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________________ ३५८ ] अध्यात्मकल्पद्रुम [दशवा प्रेरणा करता है उसीप्रकार परस्त्री-सेवन करनेवालेको भी । इससे आत्माकी शुद्ध स्थितिका भाव प्रगट होता है; परन्तु उस पर इसके पश्चात् मनोविकारकी तरंगे उठती है जिससे शुद्ध विचारा (Conscience) का दिवाला निकल जाता है और पाप अपना आधिपत्य जमा लेता है । इसप्रकार पापात्मक कार्य करनेवालेको परभवमें अनेकों कष्ट उठाने पड़ते हैं । शास्त्रकारका कहना है कि वह दूसरों को जितना कष्ट पहुंचाता है उससे भनेकोगुने कठिन कष्ट अनेकों बार उसे स्वयं सहन करने पड़ते हैं । वीर परमात्माके हस्तदीक्षित शिष्य धर्मदासगणिका कहना है कि:वहमारणअभक्खाणदाणपरधणविलोवणाईणं । सव्वजहणणो उदयो, दसगुणिनो इकसि कयाणं ।। तीव्वयरे उपयोसे,सयगुणिमो सयसहस्सकोडिगुणो। कोडाकोडिगुणो वा, हुन्ज विवागो बहुतरो वा ॥ अर्थ-लकड़ी आदिका प्रहार करना, प्राण व्यपरोपण करना, झूठा कलंक लगाना और परधनका हरण करना आदि एक वार किये हुएका जघन्य उदय भी दस वक्त होता है और तीव्र प्रद्वेषसे किया होतो सौ, हजार, लाख, कोई और कोड़ाकोड़ वार भी उदय होता है।' ऐसा किस प्रकार हो सकता है ? इसमें न्याय कहाँ रहा ? इसप्रकार सामान्य पुरुषके मनमें प्रश्न उठते हैं । इनका भी समाधान कर दिया गया है । पांच रुपयों की चोरी करनेवालेको कितना दण्ड मिलता है ? पांच मिनिट पर्यंत बलात्कार करके विषयसुख भोगनेवालेको न्यायालय ( Court ) कितने वर्षोंकी सजा देता है ? अमुक पाप समय तथा द्रव्य पर नहीं बंधता है, परन्तु उस समय उस पापकर्मके करनेमें रागद्वेषकी कितनी तीव्रता है उस पर उसका रसबंध निर्भर है। यह
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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