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________________ मार] वितदमनाधिकार पुरुष विद्वान् होता है इसमें तो सन्देह नहीं है, किन्तु उसके झामका सदुपयोग नहीं होता है और मनके राज्यमें पागल होकर अपने हाथोंसे ही गले में फाँसी डाल कर रावण, दुर्योधन, जरासंध, सुभूम भादिकी गतिको प्राप्त करना पड़ता है । विद्वानोंको यह कभी भी न समझना चाहिये कि ज्ञान है इसलिये वर्चनकी कोई आवश्यकता नहीं है । ज्ञान ऐसी वस्तु है कि जो यदि उसका सदुपयोग न किया जावे तो वह विपरीत फल भी दे देता है । जो ज्ञानी ज्ञानबलसे अकार्यको अकार्य समझ कर अशक्यपन भादि कारणोंसे उससे त्रासित होकर चित्तको प्रवृत करते हैं और सदैव उसमें प्रवृति न करनेकी अभिलाषा रखते हैं उनके उद्देशसे यह लेख नहीं लिखा गया है, परन्तु जो विद्वान् कहलाते हुए भी तल्लीन होकर अत्यन्त कपटरूपी पापकार्यों में प्रवृत होते हैं और अपना खोटा बचाव करने को तत्पर होते हैं उनके लिये ही यह लेख लिखा गया है ऐसा समझना चाहिये । मनोनिग्रहसे मोक्ष. योगस्य हेतुर्मनसः समाधिः, परं निदानं तपसश्च योगः। तपश्च मूलं शिवशर्मवल्ल्या, मनः समाधि भजे तत्कथञ्चित् ॥१५॥ " मनकी समाधि (एकाग्रता-रागद्वेषरहितपन) योगका कारण है । योग तपका उत्कृष्ट साधन है और तप शिवसुख-लताका मूल है; इसलिये किसी प्रकारसे मनकी समाधि रख ।" उपजाति. . भर इति-पाठान्तरं । भर-धर.
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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