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________________ अधिकार ] कषायत्याग [ २७१ 39 इसलिये १८ वीं गाथा में कहा गया है कि " मूलं हि संसारतरोः कषायाः कषाय ही संसाररूप वृक्षकी जड़ हैं, इसलिये कषायत्याग ही संसारत्याग है । कषायके अनुयायी वा सहचारीरूपसे विषय तथा अन्य प्रमाद आते हैं जिनके विषयमें अन्यत्र विवेचन हो चुका है । साधारणतया कषायत्याग करने निमित्त ५- ६-१९-१६-१८-२१ वाँ श्लोक है और विषय प्रमाद त्याग निमित्त १९-२० ये दो श्लोक हैं । यह विषय बहुत ही अगत्यका है, मनुष्यजीवनका बहुत बड़ा भाग इस मनोविकारपर विजय प्राप्त करनेसे ही सफल हो सकता है; अतः इस पर विजय प्राप्त करना मनुष्यजीवनकी कसोटी है । - इस विषयको आवश्यक समझकर जहाँ तक हो सका वहाँ तक प्रत्येक श्लोकपर भलिभाँति विवेचन करनेका प्रयास किया गया है । कषायका विषय इतना अधिक विस्तृत है कि उसपर बहुत विवेचन किया जा सकता है, परन्तु ऐसा करनेसे प्रन्थगौरव बहुत बढ़ जाता है, अतएव यहाँ आवश्यक बाबतपर ही विशेष ध्यान आकर्षण किया गया है, इन चारों कषायोंपर अन्यत्र बहु विस्तार से लेखकने उल्लेख किया है जिसका विस्तार से जानने के अभिलाषीको बहुत उपयोगी सिद्ध होना सम्भव है। श्री जैनधर्मप्रकाश के सौजन्यके विषयके निचे यह मिल सकेगा । यहाँ विशेषतया केवल इतना ही कहना है कि तूं चाहे जितना भी प्रयास करके कषायोंपर विजय प्राप्त कर । ऐसा करने में ही इस जीवकी सार्थकता है । ऐसा करनेपर ही यह भव यात्रा सफल होगी, नहीं तो जैसे तूं अब तक अनन्त कालचक्र में फिरता माया है उसीप्रकार यह भव भी एक फेरा समान होगा । इति सविवरणः कषायनिग्रहनामा सप्तमोअधकारः । •
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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