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________________ २६] अध्यात्मकल्पद्रुम [सतम प्रस्थान, अयोग्य, अघटित है । तेरा उनपर कोई अधिकार नही है। सचेत हो, जरा विचार कर । ऐसे गुणवाले प्राणी तो इसका अहंकार ही नहीं करते थे, परन्तु तूं तो अहंकार करनेका अधिकारी ही नहीं है । जो यदि सचेत न होगा तो अनन्त कालचक्रके प्रवाहमें फँस जायगा और फिर तेरा पत्ता भी लगना अत्यन्त कठिन हो जायगा । अनुकूल समय, स्थान और संयोगोंसे लाभ उठा। ऊपरकी गाथामें सोलह भय बतलाये गये हैं उनके नामरोग, पानी, अग्नि, सर्प, चोर, शत्रु, मत्तहस्ती, सिंह, युद्ध ये नो और इहलोक भय ( मनुष्यको मनुष्यसे भय, इसी प्रकार स्वजातिय भय ), परलोक भय ( मनुष्यको तियंच अथवा देवता या असुरोंसे भय ), आदान भय (धन चुरा जानेका भय ), अकस्मात् भय ( घरमें बैठे बैठे जो बिना किसी कारणके भय उत्पन्न हो वह ), आजीविका भय (किस प्रकार उदरपोषण होगा इससे जो निर्धनको चिन्ता होती है वह भय ), मरणभय, अश्लोक भय ( संसारमें अपकीर्ति होनेका भय ). इस प्रकार अपने प्रत्येक संसारिक कार्यमें अगत्यका भाग बजानेवाला बहुत अगत्यका विषय समाप्त हुआ। इस विषयकी अगत्यता इस बातमें है कि जब लोग बाह्याचार और देखाव पर बहुत ध्यान देते हैं, अनेकबार इससे अत्यन्त भूल भी खाते हैं तब शास्त्रकार इनको तहन उल्टी दृष्टिहीसे देखते हैं। दुनियाके दिखावमें ' भगत ' के नामसे प्रसिद्ध होनेवाले कितनीही बार तीव्र विषयी या कषायी होते हैं जबकि भद्रक जीव शास्त्रकार की दृष्टिमें महौभाग्यशाली जान पड़ते हैं। इस बातका कितनीही बार स्पष्ट भान हो जाता है, किन्तु आवश्यक्ताके समय बहुत भूल जाते हैं । अध्यवसाय और आंतरवृत्ति पर
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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