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________________ २०] अध्यात्मकल्पद्रुम : [ सप्तम करले, परन्तु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्यभवको व्यर्थ खो देता है वह फिरसे उसको नहीं पा सकता है"। युग-"पूर्व समुद्रमें शमी (कील ) डालें और पश्चिममें युगः (धोसर) डालें और दोनों समुद्रों में भयंकर प्रापण्ड तरंग आते रहते हों । फिर भी. कदाच उस युगमें शमी प्रवेश कर सके, परन्तु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्यभवको व्यर्थ खो देता हैं वह फिरसे उसको प्राप्त नहीं कर सकता है।" वैलकी गर्दनपर डाला हुआ जुआ घोंसर कहलाता है। उसमें जोत डालने निमित्त डानी हुई मेंख शमी कहलाती है। असंख्य द्वीप-समुद्रके पश्चात् भाखिरी-स्वयंभूरमण समुद्र अर्धराजप्रमाण आता है। उसके पश्चिम भागमें युग हो और दूसरी और पूर्वी भागमें शमी हो तो इन दोनोंका योग किस प्रकारसे हो सकता है ? समुद्र में अनेक जलतरंग होते रहते हैं इस बातको अवश्य लक्षमें रक्खें । : परमाणु-" देवता लोग क्रीड़ा करते करते एक पाषाणके स्तम्भको वनद्वारा छिन्नभिन्न कर दिया और फिर मेरुपर्वत पर खड़े रहकर एक नलीमें सब परमाणु एकत्र करके फूंक मार कर उन्हें चारों दिशाओं में उड़ादिये, उन्हीं परमाणुसे बना हुआ स्तम्भ कदाच वे फिरसे निर्माण कर सकें, परन्तु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्यभवको व्यर्थ खोदेते हैं वे फिरसे उसे कदापि नहि पा सकते है ।" , लाख योजन ऊँचे मेरुपर्वतसे पवनके सपाटेके साथ उड़ाये हुए परमाणुके पिछे देवताओंकी जबरदस्त फॅक, इन सबको साथ लेते हुए और परमाणुकी अणुताका विचार करते हुए ऊपरकी हक़ीकत लगभग समझमें आ सके ऐसी मालूम होती है। दशों दृष्टान्तोंको इसीप्रकार समझना चाहिये । प्रत्येक दृष्टान्त अत्यन्त रहस्यमय है, इससे इनमेंसे प्रत्येक मनन करके. समझने योग्य है । मनुष्यभवकी दुर्लभता. बहुत विचारने योग्य
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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