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________________ अधिकार ] . कषायत्याग [२५५ णमें बहुत कम वस्तु लेता था। ऐसा दाव लगाने पर भी सब लोग उसके साथ खेलमें हार जाते थे किन्तु चाणक्य किसी भी दिन नहीं हारता था । इस लिये चोथे श्लोकमें कहा गया है कि"सिद्धके पाससे प्राप्त किये हुए जुए खेलनेके पासोंके उपयोगसे अनेक लोगोंको जीत कर चाणक्यने केवल खेलमात्रसे ही राजाके भंडारको सुवर्णसे भर दिया था। कदाच देवकृपासे ग्रामके सेठलोग उस मन्त्रीको जीतलें, परन्तु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्यभवको व्यर्थ खो देते हैं वे फिरसे उसको प्राप्त नहीं कर सकते हैं।" रत्न-वसन्तपुर नगरमें धन्ना नामक एक शेठ रहता था । उसके पांच पुत्र थे। वह धन्ना शेठ रत्नकी परीक्षामें अत्यंत प्रविण होनेसे सब लोग उसको रत्नपरीक्षकके नामसे पुकारते थे । उस सेठकी यह टेव पड़ी हुई थी कि बहु मूल्यवान जो जो रत्न आते थे उनको वह खरीद कर संग्रह किया करता था किन्तु उन्हे बेंचता न था। उसके पुत्र भी उसे बारम्बार कहा करते थे कि जब रत्नोंके दुगने तिगुने दाम मिलते हैं तब फिर तुम इन्हें क्यों नहीं बेच देते हो ? इसप्रकार बारम्बार कहा करते थे तो भी शेठ तो बेचने की बात ही नहीं करता था । एक दिन सैठ परदेश गया और कितने ही दिन पश्चात् पिछा लौटा तो मालूम हुआ कि उसके लड़कोंने सब रत्न परदेशी पुरुषोंको बेच दिये हैं । जब सैठने यह समाचार सुना तो उसने अपने सब पुत्रोंको घरसे बाहर निकाल दिया और कहा कि सब रत्नोंको लेकर ही फिर वापीस घरको आना; अन्यथा नहीं । पुत्र तो बेचारे परदेशको चल दिये, परन्तु वे ही सब रत्न किस प्रकार प्राप्त कर सकते है ? इसलिये पांचवें श्लोक में कहते हैं कि"शैठके लड़कोंने परदेशी व्यापारियोंको रत्न बेंचदिये और
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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