SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० ] अध्यात्मकल्पद्रुम [ सप्तम् कुल सत्य है। यदि एक पुरुषको क्रोध करनेकी आदत हो तो उसके । मित्र उसके पास कभी नहीं रह सकते हैं । अभिमानी मित्रसे . कभी भी द्वेष हुए बिना नहीं रह सकता है । कपटी मित्रको तो मित्र कह ही नहीं सकते हैं, कारण एक वार उसका कपट प्रगट होजानेपर उसकी गुप्त रीतिसे काम करनेकी बगवृत्ति मालूम हो जाती है और फिर उसके मित्र उसको शिघ्र ही छोड़कर चले जाते हैं । अपनी जो एक फूट्टी कौड़ी भी व्यय न करने और दूसरोंके अनेकों रुपये तथा पदार्थोंको हड़प कर जानेवाले लोभी मित्रकी मित्रता तो क्षणिक होती है । ऐसे कषाय करनेवालोंकी किसीके साथ मित्रता न हो इतना ही नहीं अपितु जो उनके मित्र होते हैं वे भी शत्रु होजाते हैं। किसी समय तो उसके आचरणोंका दूसरोंके सामने वर्णन करके शत्रुका कार्य करते हैं, किसी समय उनकी प्रीतिकी किमत अपने मनमें जानकर अवसर पड़नेपर उसका परिणाम बताते हैं, और किसी समय प्रगटरुपसे मानभंग होजाने पर उसको प्रख्यात कर देते हैं। कषाय करनेवाले राजओंका राज्य भी उनकी प्रजा अथवा समीपवर्ति राजालोग हड़प कर जाते हैं और उनको शत्रु समझते है यह वात इतिहाससे स्पष्टतया सिद्ध है; सीजर, नेपो लियन, पोम्पी, हानीवाल, चार्लस द्वितीय, औरंगजेब, बालाजी और करणघेलाके अधःपतनका कारण कषाय ही था। यह विचारणिय विषय है कि कषायके कारण सम्पूर्ण प्रजा भी अपने राज्य धर्मको तिलाञ्जली देकर राज्यकी और पराङ्मुख हो जाती है। २ कषायसे धर्म मलीन हो जाता है। अगले श्लोक में हमने पढ़ाही है कि कषायसे धर्मका नाश हो जाता है। यहां बताते है कि वह मलीन हो जाता है। धर्म के
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy