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________________ अधिकार ] कषायत्याग [ २३५ प्रभुको वर्षपर्यन्त भोजन न मिल सका तो फिर चितवृत्तिको तोड़कर अस्तव्यस्त करदेनेवाले कषायो। तो क्या परिणाम होगा ? इसके विचार करनेकी आवश्यकता है । षडरिपुपर क्रोध-उपसर्ग करनेवालेके संग मित्रता. धत्से कृतिन् ! यद्यपकारकेषु, क्रोधंस्ततो धेह्यरिषट्क एव । अथोपकारिष्वपि तद्भवार्ति कृत्कर्महन्मित्रबहिर्दिषत्सु ॥ १० ॥ " हे पण्डित यदि तूं अपने अहित करनेवालेपर क्रोध करना चाहता है तो षट् रिपु (छ शत्रु-काम, क्रोध, लोभ, मान, मद और हर्ष ) पर क्रोध कर, और जो यदि तूं अपने हित करनेवालेपर भी क्रोध करना चाहता है तो संसारमें होनेवाले सब कष्टोंके दाता काँको हरनेवाले ( उपसर्गों, परिषहों मादि ) जो तेरे वास्तविक हितेच्छु हैं किन्तु बाह्य दृष्टिसे जो तुझे शत्रु जान पड़ते हैं उनपर क्रोध कर।" उपजाति. .. विवेचन-सचमुच मनुष्य अपने ऊपर अपकार हानि करनेवालेपर क्रोध करता है। हानि करनेवाला शत्रु कहलाता है । उस शत्रुने विचारशील पुरुषोंको घेर रक्खा है । उसका स्वरूप निचे लिखेअनुसार है जिसका ध्यान रखकर विचार किजिये । १- अन्यकी अथवा स्वस्त्रीके साथ अथवा अविवाहित वा वैश्याके साथ विषय सम्बंध करना, करनेकी अभिलाषा रखना अथवा कुचेष्टा करना ' काम ' कहलाता है। २-दूसरे प्राणियोंपर क्या प्रभाव पड़ेगा अथवा अपनी .. १ मानमिति वा पाठान्तरः । -
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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