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________________ अधिकार ] कोयत्याग [ २१५ "जो प्राक्रोश ( पराभव वचन, ताड़ना) सुनकर उन्टा आनन्दसे प्रफुल्लित हो जाता है, जिसपर पत्थर भी फेकें गये हों तो भी जिसके रोमरोम उन्टे विकस्वर हो जाते हैं, जो प्रायोंके अन्त हो जाने पर भी दूसरोंके अवगुणोंकी मोर ध्यान नहीं देता है, वह ही योगी है और वह शिघ्र ही मोचको प्राप्त करता है।" शालिनी. १ विवेचन -व्यवहारमें दूसरे आदमी तेरेपर कारण अकारणसे अनेक बार क्रोध करेंगे, परन्तु इस समय खूबी इसी में है कि तूं तेरे मनकी स्थितिको डामाडोल न होने देकर शान्त रखना । मनपर अंकुश रखनेवाले योगी उस समय संसारस्वरूपका विचार कर क्रोध न कर प्रसन्न होते हैं; और क्षमा धारण कर लेते हैं । पत्थर आदिकी भी यदि उनपर बोछार की जावे तो भी उनका मन चलायमान होकर क्रोधित नहीं होता, अपितु उनके रोम रोम विस्फुरित हो जाते हैं-जैसा स्कंधकमुनि महाराज के सम्बधमें हुआ था। उनकी खाल खिचनेके लिये जब पुरुष गये तो उनको अत्यन्त आनन्द हुआ और वे विचारने लगे कि ये मनुष्य मेरे लिये भाईसे भी अधिक उपकारी है, कारण कि बहुत कालमें छुटनेवाले कर्मऋणको ये प्राणी शिघ्रही चुका देगें। गजसुकुमालको अपने ससुरेपर कुछ भी क्रोध न हुआ और मेतार्य मुनिके मनमें सोनिद्वारा प्राणान्त कष्ट दिये जानेपर भी अत्यन्त हर्ष हुआ था । इसीप्रकार दमदंत मुनिपर कौरवोंने पत्थ. रोंकी बोछार की थी तिसपर भी उनका मन चलायमान नहीं हुआ और न पाण्डवोंके अनुनय, विनय करनेपर भी अति हर्ष ही हुआ . १ शालिनीमें ११ अचर होते है । मातौ गौ चेच्छालिनी वेदलोकैः म, त, त, ग, ग..
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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