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________________ अधिकार ] कषायत्याग [१५ मान-अहंकार त्याग. पराभिभूतौ यदि मानमुक्ति_ स्ततस्तपोऽखंडमतः शिवं वो । मानादृतिर्दुर्वचनादिभिश्चेत्तपः क्षयाचन्नरकादिदुःखम् ॥ २॥ वैरादि चात्रेति विचार्य लाभालाभो, कृतिनाभवसंभविन्याम् । तपोऽथवा मानमवाभिभूता, . विहास्ति नूनं हि गतिधैिव ॥३॥ " दूसरोंकी भोरसे पराभव होनेपर जो यदि मानका त्याग किया जावे तो उससे अखण्ड तप होता है और जिससे मोक्षकी प्राप्ति होती है । दूसरोंकी ओरसे दुर्वचन सुनने पर जो यदि मानका आदर किया जावे तो तपका चय होता है और नारकी प्रादिके दुःख भोगने पड़ते हैं । इस भवमें भी मानसे वैरविरोध होता है, अतः हे पंडित ! लाभ और हानिका विचार करके इस संसारमें जब जब तेरा पराभव हो तब तब तप अथवा मान( दोनोंमेंसे एक )का रक्षण कर । इस संसारमें ये दोनों मार्ग हैं (मान करना अथवा तप करना)। उपजाति. विवेचन-बाहरके पुरुषसे जब पराभव होता है तब प्राणीको अहंकार आजाता है । इस अहंकारको दबाकर पराभवको सहन करनेसे इच्छित लाभकी प्राप्ति होती है, वरना १ च इति वा पाठः । २ दुर्वचनादिभिश्च तपःक्षय इति वा पाठः। ३ मानमथाभिभूताविति वा पाठः ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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