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________________ २०७ पुष्कल पदार्थ हैं, अतः अपेय पदार्थकी कुछ भी आवश्यकता नहीं है । पांच प्रमादमेंसे इस प्रथम प्रमाद पर प्रसंगवश इतना उल्लेख किया गया, दूसरे । विषय ' प्रमाद पर ऊपर विवेचन होचुका है । तीसरे कषाय प्रमाद पर 'कषाय' द्वारमें भलिभाँति विवेचन किया जायगा । 'विकथा' के सम्बन्धमें राजकथा, देशकथा, समाचारपत्रोंद्वारा बढ़ती जाती है और प्रवृत्तिके अनुसार धर्मकथा कम होती जाती है । यह बात भी विचारने योग्य है । पांचवां प्रमाद । निद्रा' है, इसको बढ़ाना तथा घटाना यह खुदकी इच्छा पर निर्भर है । निद्राको कम करनेका सहज उपाय सात्विक आहार लेना है। पांच प्रमादोंका त्याग कर स्वशक्तिअनुसार गुणोंकी वृद्धि कर गुणस्थान प्राप्त करते रहना यह मनुष्य जीवनका कर्त्तव्य और साफल्य है । वरना तो अनेक जन्मसे ही जीव सांसारिक ऊँची स्थितियोंको संपादन करता आया है इसमें कुछ भी नवीनता नहीं है । इन्द्रियोंपर अंकुश लगाये बिना किसी भी प्रकारकी आत्मिक-उन्नति ( Spiritual Progress ) का होना असम्भव है। ॥ इति सविधरणो विषयप्रमादत्यागनामा षष्ठोऽधिकारः॥
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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