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________________ " एकमात्र भोगते समय सुन्दर जान पड़नेवाले किन्तु परिणाममें दुःख देनेवाले विषयसुख में तूं क्यों कर भासक्त हुमा है ? हे निपुण ! स्वहित अभिलाषी मूर्ख पुरुष भी कार्यके परिणामका तो विचार करता ही है।" उपजाति विवेचन--ऊपर कहेनुसार प्रत्येक कार्यमें देखे कि इस कार्यमें तात्कालिक सुख है या पारिणामिक सुख है । बड़े भयंकर कुएमें नीचे बड़ा अजगर है, चार बड़े सर्प चारों कोने में फूत्कार कर रहे हैं, स्वयं पेड़की डालीसे लटक रहा है, उसी डालीको दो चूहे काट रहे हैं-तिसपर मी मधुकी बूंदकी अभिलाषामें यह जीव विमानमें बैठे हुए विद्याधरयुग्मको भी राह देखनेको कहता है । यह मधुकी बूंदका दृष्टांन्त जीवमें बुद्धि की कितनी कमी है और स्वस्वार्थ साधनेकी उसकी कितनी अभिलाषा है यह बताता है । चिदानन्दजी महाराज भी कह गये हैं किःइन्द्रियजनित विषयरस सेवत, वर्तमान सुख ठाणे, पण किंपाकतणा फलनी परे, नव विपाक तस जाणे, संतो देखिये बे, परगट पुद्गल जाल तमाशा. विषयजन्य सुख परिणाममें एकान्त दुःख देनेवाला है और तूं एकान्त सुख मिलनेका अभिलाषी है । हे भाई ! मूर्ख भी जब कोई कार्य करता है तो थोड़ा बहुत भी परिणामका विचार करता है तो फिर तेरी विद्वत्ता क्यों निद्रा लेती है ? दिमाग( मगज )को शान्ति देकर जरा विचार कर । इस अमूल्य जीवनका अल्प सुखके खातीर होम न कर क्योंकि ऐसा शुभ अवसर फिर मिलना कठिन है ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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