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________________ इस सबका यह प्रयोजन है कि ऊपरके श्लोकमें विस्तारपूर्वक समझायेनुसार शरीरको थोड़ा थोड़ा खिला कर उसमे आत्महित कर लेना चाहिये । जिस शरीरसे संसारमें दुवा आता है उसी शरीरसे संसारसे तरा भी आ सकता है। अत: इस शरीरका सदुपयोग करना चाहिये, यह बात निके दोनों श्लोकोंसे और विशेषतया स्पष्ट हो जायगी। शरीरघरको किराया और उसका उपयोग. परोपकारोस्ति तपो जपो वा, विनश्वराद्यस्य फलं न देहात् । सभाटकादल्पदिनाप्तगेह मृत्पिण्डमूढः फलमश्नुते किम् ? ॥ ७॥ • जिस नाशवंत शरीरसे परोपकार, तप, जपरूप फल नहीं होते हैं उस शरीरवाला प्राणी थोड़ेसे दिनोंके लिये किराये लिये हुए घररूप मिट्टीके पिण्डपर मोह कर क्या फल पायगा ?” उपजाति. विवेचन-नयसारके भवसे वीर परमात्माके जीवने परोपकार, तप और ध्यानका प्रारम्भ किया, शरीरका ममत्व छोड़ दिया और अन्तिम भवमें सादेबारह वर्ष तक तप किया और उपसर्गको सहन किया । उसका वर्णन पढ़ते हुए भी,विचार होता है। इसप्रकार शरीरका उपयोग करनेका यहाँ उपदेश है । ऐसा यदि न हो सके तो फिर शरीरप्राप्ति से क्या लाभ ? टीकाकार धनविजयगणी लिखते हैं कि " किसी प्राणीने
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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