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________________ विवेचन:-एक कर्मविपाक राजा चतुर्गति नगरीमें राज्य करता है । इस राजाके अनेक सेवक हैं और शरीर भी उन अनेकों सेवकों मेंसे एक सेवक है। वह राजा प्रत्येक दिन कचहरी किया करता है । एक दिन उसको इस जीवकी याद आई तो उसने अपने सेवकोंको हुक्म दिया कि इस जीवको बन्दीखाने में डाल दो, वरना कदाच यह मोक्षनगरमें चला जायगा जहाँ पर अपनी कुछ भी सत्ता (Jurisdiction) नहीं है । शरीरनामक सेवकने तैयारी की और राजासे कहा कि जीवको कब्जे में करने के लिये रस्सी की आवश्यकता होगी। कर्मविपाकने उत्तर दिया कि " अरे काया ! इसके लिये तुझे चिन्ता करनेकी आवश्यकता नहीं है। अपनी शाला में कर्मनामकी सहस्रों रस्सियें हैं, उनमेंसे तुझको जितनी चाहिये उतनी रस्सियें लेजा । केवल तूं इस जीवसे सचेत होकर रहना, नहीं तो वह तेरे भी चपात जमा देगा।" इसपर फिर शरीररूपी सेवकको विचार हुआ कि यह कार्य तो बड़ा कठिन जान पड़ता है, इसलिये राजासे कहा कि-" महाराज ! इस जीव में तो अनन्त शक्ति है इसलिये वह मुझे मारपीट कर भगा देगा, इसलिये कोई ऐसी वस्तु प्रदान कीजिये कि जिसके मदमें अन्धा होकर वह पड़ा रहे और उसको अपनी अनन्त शक्तिका भान भी न हो ।" इसपर बहुत विचार करनेके पश्चात् राजाने मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा ये पांच , प्रमादरूप आश्रव ( दारु ) उनको दिये और कहां कि इन्द्रियरूप पात्रमें इन आश्रवको लेकर उस जीवको पिलाया करना । २३ ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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