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________________ विशेष दृढ़ है या स्त्रीका स्नेह बहुत दृढ़ है यह बतलाना बहुत कठिन बात है। स्त्रीका स्नेह बड़ी आयु होने पर प्रारम्भ होता है और कुछ वरसों पश्चात् कम हो जाता है; किन्तु जितने समय तक रहता है उतने समय तक उसका रस ( Intensity ) अधिक होता है । द्रव्यका मोह सदैव दिनप्रतिदिन बढ़ता जाता है और वृद्धावस्था में तो यह इतनी पराकाष्ठाको पहुँच जाता है कि जीवनके अवशान होते समयतक यह दूर नहीं होता है । अमुक व्यक्ति के लिये कौनसा मोह अधिक है यह कहा जा सकता है, किन्तु सामान्य रीतिसे मेरी तो यह धारणा है कि द्रव्यका मोह कदाच स्त्रीके मोहसे चढ़ता हो या न हो, परन्तु उससे कम होनेवाला तो कदापि नहीं है । किसी भी वस्तुके प्राप्त करनेमें प्राणीकी अमुक न अमुक अभिलाषा अवश्य होती है, परन्तु धनप्राप्तिमें तो बिना किसी उद्देश्य के ही केवल एकमात्र पैसोंके निमित्तसे ही पैसे एकत्र किये जाते हैं । पुत्र के लिये बहुतसा द्रव्य छोड़ जानेके लिये एकत्र करनेका भी एक मात्र बहाना ही है । इस दलील के विषयमें दो हकीकत ध्यानमें रखने योग्य है । एक तो बिना पुत्र तथा पुत्र होनेकी आशा रहित पुरुष भी इतनी ही अभिलाषासे धन एकत्र करते हैं, और उपार्जित द्रव्यका भी शुभमार्गमें व्यय नहीं करते हैं, और दूसर। यह कि जो यदि आनेवाले भवके लिये पैसे जमा कर सकत हों ( Investing of money ) तो कोई भी मनुष्य ऐसा न मिलेगा जो अपना धन अपने वारीस पुत्रके नाम पर जमा कर सके। यह भी जानने योग्य है कि प्रत्येक कार्यकी अमुक सिमा होती है अर्थात् अमुक समय के पश्चात् या अमुक प्राप्ति होनेके पश्चात्
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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