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________________ ने को उसके साथ पालीताणे पदार्पण किया । वहांसे यात्रा करते हुए अहमदाबाद पधारे और सम्बत् १९५९ का चातुर्मास अहमदाबादमें किया । इस चतुर्मासमें उन्होंने हैमलघुप्रक्रिया व्याकरणका अध्ययन शुरु किया और चतुर्मासकी समाप्ति पर गुरुमहारस्नके संग सुरत पधारे तथा सम्वत् १९६० का चातुर्मास वहां किया और उत्तराध्ययनसूत्र तथा आचारांगसूत्रका योग किया । वहांसे प्रस्थान कर पालीताणेमें पदार्पण किया तथा खम्बत् १९६१का चातुर्मास पालीताणेमें व्यतीत किया । विद्याभ्यास निमित्त विहार मुनिश्री हर्षविजयनीको संस्कृत भाषाके अभ्यास करनेकी उत्कट अभिलाषा थी किन्तु गुरुमहाराज के संग उनका बहुतसा समय विहारमें लग जाता था इससे उनको संस्कृत भाषाके अभ्यासका समय बहुत कठिनतासे मिल सकता था । इसलिये उन्होने गुरुमहाराज से अलग विहार करने की आज्ञा-प्रदान करनेकी विनति की। विनतिकी स्वीकृति प्राप्त कर उन्होंने महेसाना नगरको विहार किया तथा सम्बत् १९६२ व ६३ का चातुर्मास वहां बिताकर यसोविजयजी नामक पाठशालाके एक पंडितके पास हैमलघुप्रक्रिया व्याकरणको सार्थ समाप्त किया और अभिधानचिंतामणी कोष को भी सार्थ कंठस्थ किया । तत्पश्चात् वे गुरुमहाराजके पास गये । और सम्वत् १९६४ का चातुर्मास उनके साथ राधनपुरमें किया । सम्वत् १९६५ का चातुर्मास अहमदावादमें किया । तथा इस शालमें उन्होंने काव्यका अभ्यास शुरू किया व कल्पसूत्र तथा महानिशीथका योग हिया । वहांसे गुरुमहाराजके साथ विहार करते हुए भोंयणी, पानसर आदि नगरोंमें होते हुए विशनगर पधारे और वहांपर गुरुमहाराजकी आज्ञा पाकर मुनिराजश्री दानविजयजीके साथ अहमदावाद
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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