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________________ और इस मन की प्रसन्नता में यह जीव सुख मानता है । वास्तविक सुख का अनुभव न होने से इस में सुख जान पड़ता है, परन्तु यह एक नाम मात्र का सुख है । आगे जो सुख मन की शांति में बतलाया गया है, उसके सामने इस सुख की कोइ गिनती भी नहीं है । अपितु यह सुख अल्पस्थायी है। अभी यदि अधिक से अधिक मनुष्य की आयुष सो बरस की भी गिनी जावे तो भी अनन्तकाल के सामने इस की गिनती भी नहीं हो सकती है । इस अल्प समय में आरम्भ ही से बहुतसा द्रव्य एकत्र करके जो सुख मिलने का प्रयत्न करता है उसका इसके परिणामरूप असंख्य वर्षों तक नारकी तथा निगोद के दुःख भोगने पड़ते हैं । धर्मदासगणि कह गये है कि जिस सुख के पश्चात् दुःख मिलता हो वह सुख नहीं कहला सकता'। इस संसार में भी पचास बरस तक गृहस्थस्थिति में रहे हुए पुरुष पिछे के पांच वर्षों में जो दुःख उठाते है तो उनका पहले का सुख किसी गिनती में नहीं आता है । पैसे से सुख कैसा और कितना होता है उसकी फिलोसोफी जानने के पश्चात् यदि तुझे योग्य प्रतीत हो तो उस पर मोह करना कितनी ही बातों में प्राकृत लोकव्यवहारसें आकर्षित होजाना उचित नहीं है । संसार जिन द्रव्यवानों को महासुखी समझता हो उनके अन्तःकरण से जाकर पूछिये कि क्या उनको वास्तव में सुख है ? दुनीया के सच्चे अनुभवी कहते है कि पैसा तो एकमात्र उपाधि है, सुख तो संतोष में ही है; और वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर मन को प्रसन्न रखना यह ही सुख मिलने का उपाय है । बाकी तो रावण, जरासंध और
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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