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________________ १४२ जनित पापोदय होने से आपत्ति आती है, उसमें से रक्षा करने को यदि कोई भी शक्तिवान हैं तो वह आत्मशक्ति ही है; दूसरा कोई भी कुछ नहीं करसकता हैं । कर्मस्वरूप के जाननेवाले को इस दलील का वास्तविकपन शिघ्र ही समझ में आजायगा । (२) प्राणियों के परस्पर अनेक सम्बन्ध होते हैं । हरएक प्राणी माता, पिता, स्त्री, पुत्रपन आदि में अनंतबार होते हैं । समताद्वार में इस सम्बन्ध का सम्पूर्ण विवेचन हो चुका है, परन्तु अपत्य पर आसक्त न होने का यह एक मजतबू कारण है, अतः यहां पर उसकी और ध्यान खिचा जाता हैं । (३) उपकार का बदला मिलने का भी संदेह है । अनेकों पुत्र तो पिता के पहले ही इस संसार से कूच कर जाते हैं और कई कुपुत्र होते हैं। ऐसे पुत्र, पिता के लिये बिलकुल उपयोगी नही इतना ही नहीं हैं अपितु शोक तथा चिन्ता के कारणरूप हैं। कोणीकने अपने पिता श्रेणिक का क्या हाल किया यह सब प्रसिद्ध ही है । वृद्धावस्था में १ युवक पुत्र वृद्ध पिता का किस प्रकार सत्कार करता है यह प्रत्यक्ष ही है । वारीस बनने के लिये कितने ही पुत्र कैसे कैसे रोमाञ्चकरी कार्य करते है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है । इसका यह अर्थ नहीं है कि संसार में सुपुत्र होते ही नहीं है या है ही नहीं । राम तथा अभयकुमार जैसे भी पुत्र हो गये हैं, किन्तु अपना पुत्र कैसा निकलेगा यह संशययुक्त है और इस संदेह को मिटाने के लिये आत्मसाधन न करना यह हमारे लिये नितान्त अनुचित है । इन तीनों १ ऐसे पुत्र बहुत कम होते हैं इसलिये ग्रन्थकर्ता — सन्देह ' शब्द लगाता है, जब कि प्रथम दो बातों में निर्णय बतलाता है।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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