SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीशरीर, स्वभाव और भोगकल का स्वरूप. अमेध्यभला बहुरंध्रनिर्यन् मलाविलोद्यतकृमिजालकीर्णा । चापल्यमायानृतवंचिका स्त्री, संस्कारमोहान्नरकाय भुक्ता ॥ ७ ॥ " विष्ठासे भरी हुई चामड़े की थैली, बहुत से छिद्रों में से निकलते हुए मल मूत्र-विष्ठा ) से मलीन, बोनी में उत्पन्न होनेवाले कीड़ो से परिपूर्ण, चपलता, माया और असत्य (अथवा मायामृषावाद ) से ठगनेवाली स्त्रियों का पूर्व संस्कार के मोह से नरक में जाने के लिये ही मोग किया जाता है।" उपजाति, विवेचन-स्त्रीशरीर का स्वरूप ऊपर बहुत विवेचनपूर्वक बतला दिया गया है । इस श्लोक में कहा गया है कि स्त्री विष्ठा की थैली है । " यकृत् , विष्टा, श्लेष्म, मजा और हड़ियोंसे भरी हुई, और स्नायुषों से झकड़ी हुई, बाहर से रम्य प्रगट होनेवाली खियें चमड़े की थेली हैं।" वैद्यक शास्त्रानुसार स्त्रीके शरीर के ग्यारह-बारह द्वार सदैव बहते रहते हैं। टीकाकार वात्सायन शास्त्र में से श्लोक लेकर बताते हैं कि, ' सूक्ष्म, मृदु, योनी के मध्य भाग में रहनेवाले और लोहु में से उत्पन्न होनेवाले कमी स्त्रियों के खाज उत्पन्न करते हैं । स्त्रीशरीर का अपवित्र होना इस छोटीसी हकीकत से प्रगट है,। यहाँ लौकिक शास्त्रों से भी इसे अपवित्र सिद्ध कर दिया गया है। विचार करनेवाले को तो शास्त्र की भी आवश्यकता नहीं होती, कारण कि यह बात
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy