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________________ १४. . . टीका करनेवाले तो बहुत मिल जाते हैं, परन्तु खुद पर आ बनने पर बहुधा बहुत से भग जाते हैं । " धन्ना चमक उठा और बोला " ले ! मैने तो इन सबों को छोड़ दिया है !” ऐसा कह कर वह शिघ्र उठ खड़ा हुआ और शालिभद्र के समीप जा कर बोला कि तूं कायरपन क्यों करता है ? इस संसार में अपना कोई नहीं है, अत: चलो हम श्रीवीर परमात्मा के पास चलें। तब उन दोनोंने प्रभू के पास जा कर चारित्र ग्रहण किया। . अनाथी मुनिने भी दाहज्वर होते समय बतलाया था कि " हमारा कोई नहीं है । जिनके लिये यह जीव प्राण नौछावर करने को उद्यत है, जिनके लिये संसारत्याग करते समय इस जीव को अनेक संकल्प-विकल्प होते हैं, उनका सब का स्नेह अमुक नियमित हद तक ही होता है " ऐसे विचार से अपने सच्चे मार्ग का भान क्यों नहीं होता ? परन्तु वस्तुस्थिति ऐसी है कि सूत के धागे को तोड़ते समय भी इस जीव को कभी कभी बडी कठिनाई होती है । इसका कारण भी स्पष्ट ही है । बाह्यदृष्टि से तो ये सूत के धागे दिख पड़ते हैं परन्तु वास्तव में तो ये मोहराज के बटे हुए मोटे धागे हैं और उसको तोड़ने जितना आत्मवीर्य रखनेवाले ही इस संसारयात्रा को सफल करते हैं। दूसरे जीव भी आयुष्य के प्रमाण से तो जीवित ही हैं, परन्तु जो मोहग्रन्थी का छेद करते हैं उनका फेरा तो सफल है वरना बाकी सबोंका फेरा निष्फल होता है ! इस जीव को वास्तविक दुःख तो जन्म-मरण का ही है । इस दुःख से छुड़ाने में जो सर्वदा असमर्थ हैं. उनके लिये अनेक प्रकार के कष्ट मेल कर धनोपार्जन करना, उनके माने हुए प्रसंग पर शोक करना, उनके माने हुए व्यवहार पर अपनी इच्छा के विपरित
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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