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________________ १०० यहां कषाय समता का पूरा पूरा बन्धन करनेवाला है, समता का विरोधी है और जिस पर कषाय किया जाता है वे भी न्यायदृष्टि से कषाय के पात्र नहीं हैं इतना ही बताता है । वेरा साधन जो विरोधी होगा तो मेरा प्रत्येक कार्य विन्नपूर्ण होगा और अन्त में भी साध्य की सिद्धि नहीं होगी । मोक्ष और कषाय में शत्रुता होना अनुभवी पुरुष सिद्ध कर गये हैं; अब तुझे योग्य विचार करना चाहिये ॥ ३१ ॥ शोक का सच्चा स्वरूप-उसके त्याग करने का उपदेश. यांश्च शोचसि गताः किमिमे मे, __ स्नेहला इति धिया विधुरात्मन् । तैर्भवेषु निहतस्त्वमनंते ब्वेव तेपि निहता भवता च ॥ ३२ ॥ " ये मेरे स्नेही क्यों ( मर ) गये ! ! इस प्रकार की बुद्धि से व्याकुल होकर जिनके लिये तूं शोक करता है उन्हीं द्वारा तूं कईबार सताया गया है और वे भी तुझसे कईवार सताये गये हैं " ॥ ३२ ॥ स्वागता. . भावार्थ-ऊपर के श्लोक में जो बात कही गई है उसी का यहाँ दूसरे शब्दों में वर्णन किया जाता है। जिस प्रकार किसी भी जीव पर कषाय करना उचित नहीं है उसी प्रकार किसी के मरण-वियोगादि प्रसंग पर भी उसके लिये शोक करना अनुचित है । सगेस्नेही अर्थात् पुत्र, माता, पिता, स्त्री आदि के मरने पर शोक करने से आस्मिक गुण
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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