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________________ वृद्ध के मरने पर रोना-पीटना नहीं होता और होता है तो कम होता है। यह संसार से वैराग्य नहीं उपजाता, परन्तु स्वार्थ का अंश विशेषरूप से प्रगट करता है । मरण में तथा उसके लिये शोक करने में भी स्वार्थ का भाग होता है यह एक विचित्र हकीकत है, कारण कि बाह्य दृष्टिवान् को तो शोक में प्रेम का भाग नजर आता है; परन्तु वस्तुतः जो विचित्र मासूम होता है यह बात सच है । मरगी से पीड़ित पुरुष को सगे भी छोड़ देते हैं। अनेक अच्छे अच्छे स्थानों में देखा गया है कि सगा, स्नेही, पुत्र और स्त्री भी ग्रंथिक संनिपात से व्याधिग्रस्त प्राणी की देखभान नहीं करते । मरगी की व्याधि लगभग असाध्य मानी जाती है और उससे पीड़ित प्राणी का रोग रहित होना कठिन है। थोड़े समय के अनुभव से मनुष्यों की यह गलत धारणा हो गई है कि मरगी के पीड़ितों की देखभाल करनेवालों को भी मरगी का रोग होजाता है; (यह मान्यता झूठी होना सेगकमीशन की रिपोर्ट से प्रगट है; केवल देखभाल करनेवाले को अल्प खुराक, अन्य स्थानमें सोना, हस्तमुख प्रक्षालन आदि नियमों की भोर विशेष ध्यान देने की जरुरत है) और मरगी से पीड़ित पुरुष बहुत कम बचते हैं। इससे मरंगीवाले में थोड़ा सा स्वार्थ होता है वह भी स्वजीवन लोभ के स्वार्थ के सामने तुच्छ होजाता है । प्रेमी का प्रेम स्वार्थपरायण ही है, यह मरगीने बहुत अच्छी तरह से बतादिया है। इसके अतिरिक्त सामान्य व्यवहार में भी हम देखते हैं कि यौवन के बीत जाने पर स्त्री का पुरुष पर या पुरुष का स्त्री पर पूर्ववत् हेत नहीं रहता है । ये सब दृष्टान्त निन्नानवे टके ठीक हैं । मतलब यह है कि दुनिया का बहुत बड़ा भाग स्वार्थपरायण है। प्रेम में भी स्वार्थ है. और रुदन में भी स्वार्थ है।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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