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________________ को लोकप्रकाश ग्रन्थ देखना चाहिये । उसमें श्री भगवती सूत्र, स्थानांग सूत्र आदि के आधार पर बहुत उत्तम प्रकार से संज्ञा का स्वरूप बताया है । वहां सिद्ध किया गया है कि सब प्राणियों में आहारादि चारों संज्ञाएँ अवश्य होती हैं । परिग्रह संज्ञा के स्थान में निद्रा संज्ञा रखकर अन्य ग्रन्थकार भी कहते हैं कि "आहारनिन्द्राभयमैथुनानि सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् " इस से ज्ञात होता है कि इन्द्रियों के विषय को सब प्राणी जानते हैं, इस विषय में किसी को शिक्षा देने की आवश्यकता नही पड़ती। सर्व संझी (जिनको संज्ञा हो वे) प्राणियों में से मनुष्य धनप्राप्ति का विषय अच्छी तरह से जानता है। धन दूसरा पुरुषार्थ है। इसका क्षेत्र विशेषरूप से मनुष्य लोक में ही है। कितने ही तिर्यच धन पर चौकसी करते हैं, परन्तु उसकी प्राप्ति का विषय तो मनुष्य में ही है। मनुष्य धन के लिये अनेक प्रकार के कार्य करता है, अहर्निश उसके मिलने के लिये प्रयास करता है, उसके लिये देशविदेश फिरता है, नीच (अधम) की नोकरी करता है, नालायक पुरुषों की चापलूसी करता है और पैसे के लिये हो सके उतना प्रयत्न करता है । इस प्रकार धनप्राप्ति के लिये यह जीव अनेक प्रकार के नाच नाचता है और अनेक वेश बनाता है । भर्तृहरिने इसके लिये ठीक ही कहा है कि " त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो नर्तयसिमाम् " ' हे भाशा ! तेरे लिये लुच्चों के वचन मैने सहन किये, आँसुओं को मन में दबा कर रक्खा, शून्य मन से भी हँसा, अंतःकरण को मैने मसोस कर रक्खा और नीच पुरुषों को मैने नमस्कार भी व्यलोक-तीसरा सर्ग श्लोक ४३-४६३ २ पैराग्यशतक डोक वां
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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