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________________ इस अध्यात्मकल्पद्रुमके मूल कर्ता परमपूज्य सहसावधानी युगप्रधान आचार्यश्री मुनिसुन्दरसूरीश्वरजी महाराज हैं जो जगत्में असाधारण विद्वान् माने जाते हैं । इस ग्रन्थका विषय जितना गम्भीर और गहन है उतना ही उपयोगी भी हैं। श्रीयुत मोतीचंद गिरधरभाई सोलिसिटरने इस ग्रन्थरत्नका गुर्जर भाषामें विवेचन सहित अनुवाद किया है। इसे आपने बड़ी ही सुन्दर पद्धतिसे लिखा है । तथापि हिन्दी भाषा जाननेवाले उससे जितना चाहे उतना लाभ नहीं उठा सकते । यह ग्रन्थ कई दृष्टियोंसे विशेष उपयोगी जानकर अनुयोगाचार्य पूज्य पंन्यासजी महाराज श्री मानविजयजी गणिने मुजे इस ग्रन्थका हिन्दीमें अनुवाद करनेका कहा और ग्रन्थ देखनेसे मेरे हृदयमें यह उत्कण्ठा जागृत हुई कि इस अमृतके रसास्वादनसे मेरे केवल देवनागरी भाषाके अल्पज्ञ बन्धु भी क्यों वंचित रहे अतएव मैंने मेरी यथाशक्ति पारिभाषिक और कठिन शब्दोंसे लेखनीको बचानेका व भाषाको सरल, सादी व सामान्य बुद्धिगम्य बनानेकी ओर पूर्ण लक्ष्य दिया है; क्यों कि ऐसे कठिन शब्दादिका उपयोग करनेसे साहित्यप्रचारका यथार्थ लाभ नहीं मिल सकता । भले ही लेखक महाशय अपनेको विद्वान् तरीके मना लेवें परन्तु पाठकहितका साध्य तो प्रायः दूर ही रहता है, और हिताहितको लक्ष्यमें रखना तो प्रत्येक लेखकका सर्वप्रथम कर्तव्य होना चाहिगे । यद्यपि हमे खेद है कि प्रेसकी तकलिफोके कारण हम इसे शिघ्नतया प्रकाशित न कर सके । महात्माके ग्रन्थस्थित उपदेश जिज्ञासु प्राणियोंके लिये एक सच्चा पथप्रदर्शक बन उनको सचे एवं शाश्वत आत्मिक सुखकी प्राप्ति करावे । इतिशम् । विनीत कु. सुमित्रसिंह लोडा-जैन ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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