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________________ होते अवश्य हैं और हम भी विचार करें तो वैसे हो सकते हैं। बहुत से प्राणियों की टेब सम्पूर्ण सुन्दर शरीर में क्षत क्या है इसे जानने की होती है। गुणवान् में कोई सहज दोष हों उनको ढूंढ कर उनकी निन्दा करनेवाले की बहुत आत्मिक हानि होती है । गुणप्राहीपन की टेब बहुत लाभकारी है । ज्ञानी पुरुष का दूसरा लक्षण यह है कि - यदि दूसरा कोई प्राणी उसकी निन्दा करे अथवा उस पर क्रोध करे तो भी वह उस समय अपने मन को स्थिर रक्खे | अपनी निन्दा सुन कर वह क्रोध नहीं करता और उस समय उसका मन डावाडोल नहीं हो जाता, परन्तु शांत रहता है। इतना ही नहीं परन्तु अपनी आत्मिक सत्ता का परीक्षाकाल जान कर ज्ञानी पुरुष तो उससे और आनन्दित होता है । उत्कृष्ट गुण1 प्राप्ति की उत्कट इच्छा की यहाँ हद हो जाती है । दुनियाँ के अनेकों पुरुष अपनी स्तुति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सुनने की अभिलाषा रखते हैं और सुन कर खुश होते हैं । कई बार आत्मलघुता प्रगट करके भी स्तुति करवाने की इच्छा रखते परन्तु ऐसी इच्छा न रखनेवाले बहुत कम होते हैं। अपनी स्तुति करवाने से कदाच अहंकार उत्पन्न हो जावे इस कारण से स्तुति सुनने की इच्छा न रखनेवाले अपितु इससे दुःखी होनेवाले तो बहुत ही कम होते हैं । दुनियाँ में मोटा भाग्य सच्चे रस्ते होना कठिन है जिसका यहाँ प्रगटरूप से उल्लेख किया गया है । अतः थोड़े से ज्ञानी पुरुषों के पदानुगामी होना ही शुद्ध मार्ग है । इसी प्रकार दूसरों के गुणों की निन्दा सुनकर दुःखी
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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