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________________ "जिन्होंने सर्व दोषों को दूर कर दिया है और जो वस्तुतत्व को देख रहे हैं उनके गुणापर पक्षपात रखना वह प्रमोद भावना कहलाती है।" अनुष्टुप् विवेचन-जिन महान पुरुषोंने अपने सब दोषों को महान् प्रयास कर के दूर कर दिया है, अर्थात् जिनके क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष आदि महान् दोषों का नाश हो गया है और जो वस्तुस्वरूप को बराबर समझते हैं ऐसे महान पुरुषों के गुण की ओर बहुत मान रखने का उपदेश किया गया है। अनेक उपसर्ग सहन कर के आत्मवीर्य फोड़कर संसार में जो असाधारण सद्गुण कहलाते हैं उन को प्राप्त करनेवाले श्री वीतराग महाराजाओं को धन्य है कि उन्होंने अपने सर्व कर्मों का क्षय कर के जिननाम को सिद्ध कर बताया है। और भी अनेक साधु महात्मा इस संसार में हो गये हैं जिन्होंने परोपकारनिमित्त अपने प्राणों तक की परवाह भी न की । दुनिया पर उपकार करने निमित्त अनेकों ग्रन्थ लिख, उपदेश देकर, वस्तुस्वरूप का भान कराया है और उस के लिये अपने नाम की उन्होंने कुछ भी परवाह न की । अब भी अनेक साधु मुनिराज उपदेश देकर अन्य जीवों पर उपकार कर रहे हैं और अपने कर्म का क्षय करने निमित्त भी असाधारण प्रयास कर रहे हैं । ऐसे साधुओं को धन्य हैं ! धैर्य धारण कर अपनी स्थिति तथा संयोगानुसार धर्मानुष्ठान और परोपकार करने का आनन्द, कामदेव आदि श्रावकों और स्त्रीजाति को प्रशंसापात्र बनानेवाली सुलसा आदि १ बहुमान की तीव्र इच्छा अथवा मन का आनन्दं ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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