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________________ सोता है । उस समय उसके लिये पृथ्वी सुन्दर शय्या है, लता. रूप उसकी विशाल भुजा उसका तकिया है, भाकाश उसका चंदवा है, अनुकूल पवन उसका पंखा है और चन्द्रमा उस का देदीप्यमान दीपक है तथा वह विरति स्त्री की संगत में भानन्द का उपभोग करता है । इस प्रकार सब राज्यचिन्ह उस मुनि के पास है और राजा से भी अधिक शान्ति से वह सोता है; कारण कि वह सर्व मानसिक उपाधियों से रहित है। इस समय में भी किसी कारण से सन्त पुरुष विपत्ति मांग लेते हैं, कारण कि सुख के समय में दुःख भोग लिया जावे तो बाद में आपत्ति न उठानी पड़े और नियमित दुःख वो एक न एक बार भोगने ही पड़ते हैं, जिस से उनको उस समय कायरता न बतानी पड़े। इस प्रकार सांसारिक जीवों और यति के सुख की तुलना की गई है। इन दोनों दशाओं को हे आत्मा!तूं ध्यान में रखना। समतासुख अनुभव करने का उपदेश । विश्वजंतुषु यदि क्षणमेकं, साम्यतो भजसि मानस ! मैत्रीम् । तत्सुखं परममंत्र, परत्राप्यनुषे न यदभूत्तवजातु ॥८॥ " हे मन ! यदि तूं सर्व प्राणी पर समतापूर्वक एक क्षण भर भी परहितचिन्तारूप मैत्रीभाव रक्खे तो तुझे इस भव और परभव में ऐसा सुख मिलेगा कि जिसका तूंने कभी भी अनुभव नहीं किया होगा।" स्वागतावृत्त.
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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