SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६० س س س . س س २८ ८ س ३८९ س . س - ३९५ ३९० ३३८ ४०० ४०२ माना हुमा सुख-उसका परिणाम प्रमादरे दुःख शास्त्रगत दृष्टान्त अपेक इन्द्रियसे दुःखपर दृष्टान्त प्रमादका त्याज्यपन मुखप्राप्ति और हुःखनाशका उपाय सुखप्राविध उपाय-धर्म सर्वस्व सकाम दुःख सहन-उससे लाभ पापक्रमों में भलाई माननेवालोंके प्रति तेरे कृत्य और भविष्यका विचार सहचारी मृत्युसे बोध पुत्र, स्त्रीयां सगे सम्बन्धियों निमित्त पाप करनेवालोंको उपदेश परदेशी पंथीका प्रेम-हितविचारणा प्रात्मजागृति घोरे कष्ठसे डरता है और अत्यन्त कष्ट भोगनेके कार्य करता है उपसंहार-पापका डर एकादशो धर्मशुध्धुपदेशाधिकारः धर्मशुद्धिका उपदेश शुद्ध पुण्यजलमें मेल-उसके नाम परगुणप्रशंसा निजगुणस्तुति तथा दोष निन्दापर ध्यान न देना शत्रुगुणप्रशंसा परगुणप्रशंसा गुणस्तुतिकी अपेक्षा हानिकारक है। " शुद्ध " धर्म करनेकी आवश्यकता करनेवालोंकी स्वलाता प्रशंसारहित सुकृत्यका विशिष्टपन सगुण प्रशंसासे लाभ कुछ भी नहीं है गुणपर मत्सर करनेवाला-उसकी गति शुद्ध पुण्य अल्प होनेपर भी उत्तम है, उक अर्थ दृष्टान्तसे बताते हैं भाव तथा उपयोग रहित क्रियासे कायक्लेश-उपसंहार .. ४०८ . ४१३ ४१४ ४१७ ४१८ १२० ४२५ ४२८ ४३९ ४३०
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy