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________________ or बालावबोध सहित कही, जेह भणी महामोह महाअजाणिवउं तेहनउ आवास स्थानक छइ । चंडरुद्र आचार्य सरीषा सुद्ध प्ररूपकनी रीसह रूडीं । जमालि सरीषा उत्सूत्रप्ररूपकनी क्षमाइ विरूई इसिउ भाव । यत उक्तं गच्छाचारप्रकीर्णके— जीहाए वि लिहतो न भइओ जत्थ सारणा नत्थि । दंडेण वि तातो स भद्दओ सारणा जत्थ ॥ १४ ॥ ( गा. १७ ) [ जि.] सूत्र भाषता उपदेश देता भणावता गुरुनी रोसो वि रोषई धन्नस्स धन्य पुरुषहूई क्षमानउ भंडार हुई । जिम क्षमा भली तिम गुरुनी रीसई परमार्थवृत्ति हितकारिक हूंती भली क्षमारूप जाणिवी । जिम चंडरुद्राचार्यनी रीस नवदीक्षित महात्मा हूई 10 केवल ज्ञान भणी हुइ । उत्सूत्रि करी क्षमाई कीधी हूंती दोष महाअज्ञान तेहनउ आवास स्थानक हुइ ॥ १४ ॥ १९ [ में . ] तेहनउ रोसु क्षमानउ कोसु जाणिवउ, जे सूत्र सिद्धान्त खरडं बोलइ, धन्य भाग्यवंत इंतउ । अनइ उत्सूत्र सिद्धान्त विरुद्ध जे बोलs तेहनी क्षमाइ दोषइ जि हेतु कहींइ, जेह भणी ते उत्सूत्र -15 प्ररूपक महामोह अजाणिवउं तेहनउ आवास स्थानक छइ । चंद्ररुद्राचार्य सरीषा सुद्ध प्ररूपकनी रीसह रूडइ । जमालि सरीषा उत्सूत्रप्ररूपकनी क्षमाइ विरुई ॥ १४ ॥ [सो.] हिव' जिनधर्मनउं दुर्लभपणउं कहई छ । [ जि. ] ' मोक्षि सुख छन् कि नथी ?' ए वातनउ निश्चय • कहइ छइ । [मे.] हिव जिनधर्म्मनउं दुर्लभपण कहई । १ हेव.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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