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________________ त्रण बालावबोध सहित किसुं कहिवउं ? जिम राजा ति आगलि सामान्य लोकनउ न्यायमार्ग प्रमाण नहीं तिम जिनधर्म आगलि कुलक्रमागत अनेरा धर्म प्रमाण नहीं ॥७॥ [मे.] लोकमाहि राजनीतिनउ न्याय कुलक्रम माहि कहीइ नावइ । काई बेवइ मार्ग जूआ । तउ पछइ त्रैलोक्यनउ प्रभु ठाकुरु जिनेन्द्र 5 तेहना धर्मनइ अधिकारि कहिवउं किसउं ? ॥७॥ [सो.] जीवहूइ संसार ऊपरि वैराग्य आवता दुहिलउ छइ । ए वात कहइ छइ । [जि.] वली जिनधर्मनी मोटाई प्रकासइ । जिणवयणवियन्नूण वि जीवाणं जं न होइ भवविरई। 10 ता कह अवियन्नूणं मिच्छत्तयाण पासम्मि ॥८॥ [सो.] जे श्रीजिनवचन सिद्धांत तेहना विज्ञ जाण छई तेहइ जीवहूई जउ संसारनी विरति वैराग्य नावइं । ता कह० तउ अविज्ञ अजाण जे मिथ्यात्विइं करी हणिया वाहिया छइं ते कन्हलि संसारनी विरति निवृत्ति किम आवइ ? जाणहूई मिथ्यात्वादिका पापनी निवृत्ति नथी आवती तउ अजाण मिथ्यात्वीहूइं किम आवई ? विरतिनउं आविवउं गाढउं दुहिलउं छइ । इसिउ भाव ॥ ८॥ [जि.] जिनवचन तणा जाणहार जीवईहूइं जइ भवविरति संसार हूंतउं विरमण न हुई। अवियन्नूणं अजाणता अज्ञान अनइ [ मिथ्या ]त्वहत मिथ्यात्वव्याप्या जीव तेहनइ पासि कन्हई किमु२० संसारनउ मेल्हिवउं हुइ ? अपि तु न हुई। एतलई जिनधर्म लगी १ तेइ. २ मिथ्यात्वि. ३ ' वाहिया' नथी.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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