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षष्टिशतक प्रकरण
जिनसम्यक्त्व हुई ते घणाई अजरामरपद पाम्या । एतलइ सम्यकत्वधारक सघलाई अमर हुइं ॥४॥
[मे.] देव दानव गोत्रज क्षेत्रपालप्रमुखे किहांई सांभलिउ जे मरणतउ कोई राषिउ ? अपि तु को राषिउ नहीं। पणि दृढ कीधउं 5 जिन ऊपरि सूधउं मन, सम्यक्त्व खरउं जे जीवे पालिउं ते जीव घणा
अजरामरपदि मोक्षपदि पहुता ॥ ४॥
[जि.] हिव सम्यकत्वनउं प्रमाण कही मिथ्यात्वनउं प्रमाण कहइ छ।। जह कुवि वेसारत्तो मुसिजमाणो वि मन्नए हरिसं। तह मिच्छवेसमुसिया गयं पि न मुणंति धम्मनिहिं ॥५॥
[सो.] जिम कोएक मूर्ख वेश्या अधम निस्नेह स्त्री तेहनइ व्यसनि वाहिउ तेहहूइं आपणी लक्ष्मी पूरतउ पोतउ' हारतउइ मुसितउइ तुच्छ सुखनइं लोभिई हर्ष मानइं तिम ए अजाणी' जीव कूडउ धर्म मिथ्यात्व तेह वेश्या तुच्छ मोहनइं कीधइं इहलोकना 15चमत्कारमात्रना वाहिया हुंता धर्मरूपिउं निधान गिउंइ जाणइ नहीं । मूर्ख इसिउं न जाणइ ईणइ मिथ्यात्व करी अम्हारउ सघलउ धर्म जाइ छइ। परलोकि अम्हे दुःखिया थासि ॥५॥
[जि.] जिम कोई वेश्यासक्त पुरुष वेश्याइं मुसीतई हूंतउ हर्ष मानइ तिम मिथ्यात्वरूप वेश्याइं मुस्या हूंता धर्मरूपिउं निधान २०गमिउंई न जाणइं ॥५॥ __ [मे.] जिम कोई वेश्यानइ विषइ अनुरक्त रातउ थोडास्या
१ पोतउंईं. २ अजाण. ३ तेहरूपिणी. ४ मिथ्यात्त्वि. ५ थासिअं.