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________________ नेमिचन्द्र भंडारी-विरचित पष्टिशतक प्रकरण त्रण बालावबोध सहित [सो.] सिरिवद्धमाणजिणवरपाए निअगुरुपए य नमिऊण । सहिसयस्स य एवं वक्खाणं किंपि जंपेमि ॥१॥ नात्रोक्तिमेलो न विभक्तियुक्तिः क्रियादियोगोऽपि च नो विलोक्यः । भावार्थसारैर्विधीयतैषा वृत्तिर्मया मुग्धविबोधनार्थम् ॥२॥ नेमिचन्द्र भंडारी पहिलङ तिस्यउ' धर्म न जाणतउ । 5 पछइ श्रीजिनवल्लभसूरिना गुण सांभली अनइ तेहना कीधा पिंडविशुद्धिप्रमुख ग्रंथनई परिचई साचउ धर्म जाणिउ । तउ तीणं श्रीधर्म सघलाइना मूल भणी श्रीसम्यक्त्वनी शुद्धि अनइ तेहनी दृढतानइ काजि १६० गाथा कीधी । सारभूत तिहां पहिलं सर्व धर्ममाहि सारतत्त्वभूत च्यारि बोल पहिली गाहई कहि छइ ॥ 10 [जि.] श्रीगुणवितः फलिनः सुरद्रुसदृशोऽभितो महात्मानः । विजया भूवृषभाद्या अपि ददतां मंगलं नित्यम् ॥ १॥* श्रीनेमिचन्द्रविरचितचंचद्वैराग्यरङ्गकस्यैषा । श्रीजिनसागरप्रभुणा बालावबोधाख्या ॥२॥ षष्टिशताख्यप्रकरणव्याख्या प्रस्तूयतेऽत्र नव्येयम् । 15 भव्यजनबोधहेतोर्वार्त्तारूपा विशुद्धा च ॥३॥ १ तिस्यउं. २ संभाली. ३ तीणइ. ४ गाहइ. ५ कइ. * आ तथा आ पछीनो श्लोक मूल प्रतमां आम अशुद्ध ज प्राप्त थाय छे.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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