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________________ श्रण बालावबोध सहित तेहरूपिआ हलाबोल द्रहबोल मेल्ही करी । जिम द्रहबोलमाहि वस्तु पडी न लाभई तिम लोकप्रवाहि तत्त्वातत्त्वविचार न लाभई । तेह भणी ते छांडीनइ तत्त्ववृत्तिई गुरु जोईनइ लेवु ॥ १४० ॥ [जि.] ता तउ पछइ एक अद्वितीय युगप्रवर युगप्रधान गुरु मध्यस्थमनोभिः मध्यस्थ उदासन पुरुषे समय सिद्धांत तेहनी दृष्टि जोइवउं 5 तिणि करी । अथवा सिद्धांतरूपिणी दृष्टि लोचन तिणि करी सम्भ सम्यक् साचउ परिक्खियध्वो परीखिवउ । किसुं करी ? प्रवाह लोकप्रवाह तेहरूपिउ द्रहबोल मेल्ही करीनइ । जिम द्रहबोलमाहि वस्तु पडी न लाभई तिम लोकप्रवाहि तत्त्वातत्त्वविचार न लाभई । तिणि कारणि लोकप्रवाह मेल्ही मध्यस्थेई जि पुरुषे सुगुरु परीखिवउ,० न तु आग्रहवंते पुरुषे । यदुक्तं आग्रही बत निनीषति युक्तिं तत्र यत्र मतिरस्य निविष्टा । x x x युक्तिर्यत्र यत्र मतिरेति निवेशं ॥ .. सिद्धांतनी दृष्टि किसी ? पडिरूवो तेयस्सी जुगप्पहाणागमो महुरवको । 15 गंभीरो धीमतो उवएसपरो य आयरिओ॥ अप्परिस्सावी सोमो संगहसीलो अभिग्गहमई य । अविकत्थणो अचवली पसंतहियओ गुरू होइ ॥ ( उपदेशमाला, गा. १०-११) इत्यादि सिद्धांतदृष्टिई जुगप्रधान उलषी आदरिवउ ॥ १४०॥ १० [मे.] तेह भणी एह भरतक्षेत्रमाहि एकेकउ युगप्रधान अनुक्रमिइं दुप्पहसूरिसीम बिसहस्र चडोत्तर होसिइं । एह भणी १६ आ श्लोकचं त्रीजु चरण मूळमा आम बेटित छे.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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