SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ aण बालावत्रोध सहित १३९ : किमु ! श्रुतव्यवहार समाचरता पुरुषहूई विसुद्ध बोधि हुई । इसी प्रतिज्ञा किसातउ ? जिननी आज्ञानउ आराधकपणातउ । एहे तु जे जे जिननी आज्ञाना आराधक हुई तेहां तेहां पुरुषहूहूं विसुद्ध बोध हुई । इसी अन्वयव्याप्ति । जिम श्रीश्रेणिक महाराजहूई । इसु दृष्टांत । तिम एही जिनाज्ञाराधक । ए उपनय । तिणि कारण विसुद्ध बोधि हुई ज । वली 5 अप्रत्यक्ष बोधिफल प्रति संदेहकारक पुरुष वादी इसुं कहइ, 'अहो प्रतिवादिन् ! हेतु हुउ, साध्य म हुउ । विपक्षि किसु बोध ? ' इसिइ कहि हूंत प्रतिवादी ऊतर दिइ, 'अहो वादिन् ! जेहाहूइं विसुद्ध बोधि न हुइ तेहाहूई जिनाज्ञाराधकपणउंई न हुई, जिम मिथ्यात्त्वीहूइं । तेही परि ए नही । तिणि कारणि श्रुतव्यवहार समाचरता पुरुषहू 1 विसुद्ध बोधिफल हुइ जि ।' इसिह पंचावयवरूप अन्वयव्यतिरेकी अनुमानप्रमाणि करी जिनमार्गप्रवर्तक जीवहूई बोधिफल स्थापई ॥ १३८ ॥ [.] जेह भणी वीतरागदेवे कहिउ श्रुतसिद्धांत तेहनउ व्यवहारमार्ग साधतां हूतां विसुद्ध सूधी जिनधर्मनी प्राप्ति हुई । उ जिननी आज्ञाना आराधकपणात ॥ १३८ ॥ [सो.] श्रीगुरु आश्री वीतरागनी आज्ञा कहइ छइ । [ जि.] अथ सुगुरु-दुर्लभता कहइ । जे जे दीसंति गुरू समयपरिक्खाइ ते न पुज्जंति । पुणमेगं सद्दहणं दुप्पसहो जाव जं चरणं ॥ १३९ ॥ 15 [ सो. ] जे जे ० कवि कहइ छइ । हिवडांना कालि जे जे 20 गुरु देखी ते ते सिद्धांतनी परीक्षाई न पहुचई । कहिमाहि सघलाई गुरुना गुण देखी नही । पुणमे गं० पुण एक वातनुं निश्चि सद्दहिवुं जाणिवुं जं परमेश्वरि इम कहिउं छइ । पांचमा आरानइ
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy