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________________ होवाथी आवां स्थानो अनायासे जोई शकाशे. केटलाक विस्तृत बालावबोधोमां आवे छे एवी अवान्तर चर्चाओं के दृष्टान्तो प्रस्तुत अनुवादोमां नथी. त्रण समसामयिक विद्वानोए एक ज मूल ग्रन्थना करेला त्रण जुदा जुदा गद्यानुवादो मूलना त्रिविध भाषान्तर उपरांत एक ज भावना वाचक विविध शब्दो तेम ज एक मूल शब्दनी तत्कालीन जुदी जुदी अर्थच्छायाओ तथा एना रूपभेदो—–जेमां तत्कालीन बोलीभेदोनुं प्रतिबिंब पण पड्युं होय एवो पूरी संभव छे—जाणवामां उपयोगी थशे. षष्टिशतक प्रकरण ' अने तेनो कर्ता धर्म के तत्त्वज्ञानने लगता कोई एक विषय उपर प्राकृत पद्यमां रचायेली संक्षिप्त कृतिओने जैन साहित्यमां ' प्रकरण' कहे छे. ' षष्टिशतक' आवुं एक प्रकरण छे, अने एमां १६० गाथाओ छे ( १६१मी गाथा केवल पुष्पिका रूप छे), ते उपरथी एने ' षष्टिशतक ' नाम आपवामां आवे छे.* एना कर्त्ता नेमिचन्द्र भंडारी नामे श्रावक गृहस्थ छे. आ कृतिनुं चोकस रचनावर्ष मळतुं नथी, पण विक्रमना तेरमा शतकमां नेमिचन्द्र विद्यमान हता ए निश्चित छे. जैन श्वेतांबर संप्रदायना खरतर गच्छनी विविध पट्टावलीओमां तेमज मेरुसुन्दर उपाध्यायकृत बालावबोध (पृ. २) मां उल्लेख छे ते प्रमाणे, तेओ मारवाडमां मरोट 6 * मूल ' षष्टिशतक ' ते उपरनी तपोरत्न अने गुणरत्ननी टीका (सं. १५०१ ) सहित जैन सत्यविजय ग्रन्थमाळाना छठ्ठा पुष्प तरीके अमदावादथी ई. स. १९२४मां प्रसिद्ध थयेल छे. गुजराती अनुवाद साथे ' षष्टिशतक' मूल सं. १९७६मां जामनगरवाळा पं. हीरालाल हंसराजे छपावेल छे, वळी मोहनलालजी जैन ग्रन्थमाळाना बीजा पुष्प तरीके ई. स. १९१७मां बनारसथी एनो मूळ पाठ बहार पडेल छे. उपर धेली, तपोरत्न अने गुणरत्ननी संस्कृत टीका उपरांत ' षष्टिशतक' उपर सहजमंडनकृत व्याख्यान, धर्ममंडनगणिकृत टीका तथा कोई अज्ञात कर्तारचित अवचूरि जाणवामां आवे छे (जुओ प्रो. वेलगकरकृत 'जिनरत्न कोश', पृ. ४०४ ).
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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