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________________ अण बालावबोध सहित सिद्धांतनी रीतिइं करी, वली चउथउं कालनइ अनुमानि करी, वर्षाकाल टाली अनेरइ सीयालइ उन्हालइ कालि विहार करिवानइ अनुमानि करी, वली पांचमइ क्षेत्रनइ अनुमानि करी, जिणइं क्षेत्रिइं बइतालीस दोषविवर्जित शुद्ध आहार लाभइ तिणइं क्षेत्रि विहार करिवानइ देषिवइ करी एह पांच परीक्षाई करी परीक्षिउ हूंतउ सुगुरु जाणिउ 5 मानिउ ॥ १३४॥ [मे.] निज आपणी मतिनइ अनुसारि, व्यवहारनइं ज्ञाइं करी, सिद्धांतना वचननइ अनुसारि, द्रव्य क्षेत्र काल भावनइ अनुमानि परीषीनइ सुगुरु जाणिवउ ॥ १३४॥ [जि.] तउहीइ गुरु मोटइ पुण्यइं लाभई । इसी वात कहइ ।० तह वि हुनियजडयाए कम्मगुरुत्तस्स नेव वीससिमो। धन्नाण कयत्थाणं सुद्धगुरू मिलइ पुण्णेहिं ॥१३५॥ [सो.] तह० तऊ आपणउं जडता मूर्खपणउं । कम्मगुरु० अनइ आपणा भारेकर्मीपणानु वीसास न कराई । कुण जाणइ केतीवारइं गुरुइ परीषतउ वरासिउ हउ। जेह भणी सुद्ध० सुद्ध खरउ15 गुरु धन्य धन्य कृतार्थ भाग्यवंतइ जि रहई, मोटा पुन्यनइ उदइ मिलइ ॥ १३५॥ [जि.] तथापि हिं नियजडयाए निज आपणी जडता मूर्खपणउं तिणि करी कर्मगुरुत्त्वहूई मारेकर्मी जीवहूई सुगुरु जाणिवानउ विश्वास नही । पुण धन्य भाग्यवंत अनइ कृतार्थ कृतपुण्य पुरुषहूइं पुण्य५० करी सुद्ध गुरु चारित्री आचार्य मिलई ॥ १३५॥ १ मे. ह. २ हउं हउं. ३ उदय.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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