SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रण बालावबोध सहित १२९ [मे.] कहीइं ते दिहाडउ मुझनई होइसिइ, जहीइं सुगुरु सुद्ध प्ररूपकनइं पादमूलि उत्सूत्रलेसरूप विषलव तिणि करी रहित हूंतउ जिनधर्म सांभलिसु ? ॥ १२८॥ [सो.] वली गुरु आश्री' कहइ छइ । [जि.] अथ गुरुचिन्ता आश्री कहइ छइ । दिवा वि केवि गुरुणो हिअए न रमंति मुणितत्ताणं । केवि पुण अदिट्ठ चिय रमंति जिणवल्लहो जेम ॥१२९॥ [सो.] दिट्ठा० केतलाइ गुरु साक्षात् दीठाइ हुंता तत्त्वना जाणनइ मनि रमइ नही। हीयइ हर्ष न करइ। केवि० अनइ केतलाइ पुण गुरु अणदीठाइ हुंता हीइ रमई वसई । तेहना' गुण 10 सांभलीनइ हीइ हर्ष ऊपजइ। जिम श्रीजिनवल्लभसूरि । ते जिनवल्लभसूरि नेमिचंद्र भंडारीथा पहिला हुआ भणी अदृष्टइ हूंता नेमिचंद्र भंडारीनइ मनि तेहनां कीधां पिण्डविशुद्धि आदिक प्रकरण देषतां वस्या । इसिउ भाव ॥ १२८॥ [जि.] मुणितत्ताणं ज्ञाततत्त्वांने हियइ केईएक गुरु:5 दीट्ठाई हूंता न रमई, न वसई, न गमई । अनइ वली केईएक अदीठाई गुरु हीयइ रमइ। किहनी परि ? श्रीजिनवल्लभसूरिनी परि। जिम श्रीजिनवल्लभसूरि अणदीठाई हूंता श्रीनेमिचंद्र भंडारी प्रमुख ज्ञाततत्त्व श्रावकने हीए सुगुरुपणइ करी वस्या तिम केईएक सुगुरु हीइ अणदीठाई वसई । एतावता श्रीजिनवल्लभसूरि पहिल हूउ ।२० तिणि कारणि श्रीनेमिचंद्र भंडारीइ न दीठा । पुण तउ हीइ जाणे किरि दीठाई ज छइ । जइ हियामाहे वसइ छइ । १ आश्रिय. २ 'वसई' नथी. ३ तेहइना, ४ गुणइ. . . १७
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy