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त्रण बालावबोध सहित
१२५ डली भीतिई लागी पाछी पडइ । भीतिमाहि कांई न रहई । तिम स्पृष्ट कर्मनउं स्वरूप जाणिवउं । लगारएक लागइ ते तत्काल विलइ जाइ ते स्पृष्ट कर्म । वली जिम सूकी छोहपंकित भीति । तेह ऊपरि नीली चूनानी डली लांखीइ । पछइ कोई एक सूकी पूठई भीति हूंती ऊखेली लांखइ । भीतिइं सूकी भणी लगारई न रहइं । तिम बद्धकर्म जीवहई कर्म 5 लागइ, केतलीएक वेला रहइ। पछडइ उपक्रमि करी फीटइ। ते बद्धकर्म । वली जिम नीली भीतिनी छोह माहे सूकउ चूनानउ खंड घालीयइ । पछइ कालांतरि दोहिलउ नीकलइ । तिम निधत्त कर्म । जीवहूई कर्म लागइ । जीव भोगवइ । कालांतरि गाढइ उपक्रमि जे कर्म फीटइ ते कर्म निधत्त नाम जाणिवउं । अनइ जिम नीली छोहि सउं भीति चिणी:० हुइ अनइ भीतिनी छोहि सूकी पूठिई वज्र एकपणउं हुइ तिम निकाचित कर्म । जीव नइं कर्म एक हूयां । जूजूयां न थाई। जां जीवइ जीव तां ते कर्म भोगवइ । गाढ अनंते उपक्रमे कीधे न जाई । संपूर्ण कर्म भोगवीइ ते निकाचित कर्म । तथा चोक्तं
कृतकर्मक्षयो नास्ति कल्पकोटिशतैरपि ।
अवश्यमेव हि भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ॥ इत्यादि कर्मस्वरूप कर्मग्रंथशास्त्रतउ जाणिवउं । एतलई जे चीकणे कर्मे लीप्या तेहां जीवांहूई उपदेश न लागई। यदुक्तं श्रीउपदेशमालायांउवएससहस्सेहि वि बोहिजंतो न बुज्झई कोई।
20 जह बंभदत्तराया उदायिनिवमारओ चेव ॥ १२५॥ (गा. ३१)
[मे.] मा मा० घण घण घणउं म बोलउ। जे जीव चीकणे कर्मे बांध्या छइं तीयां सघलांनइ विषइ हितोपदेश महादोष समान हुई ॥ १२५॥