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________________ त्रण बोलावबोध सहित [मे.] इतर पाधरा ही ठाकुरनी आज्ञानइ भंगि मरणादिक दुःख ऊपजइं । पछइ त्रैलोक्यनउ प्रभ जिनवरेन्द्र देवाधिदेव तेहनी आज्ञानइ भंगि जे दुक्ख उपजइं ते किम कही सकीइं? ॥९८ ॥ [सो.] वली एह जि वात कहइ छइ । [जि.] अथ जिनवचननउ गुण कहइ । जगगुरुजिणस्स वयणं सयलाण जियाण होइ हियकरणं । ता तस्स विराहणया कह धम्मो कह णु जीवदया ॥१९॥ [सो.] जगगुरु० जगत्त्रयनउ गुरु श्रीजिनेन्द्र वीतराग तेहनउं वचन सर्व जगना जीवहूई हितकारि छइ । ता तस्स० तउ तेहनी विराधना जउ करइ, तेहनउं वचन न मांनइं, अप्रमाण करइं० तउ कह धम्मो तेहहूई धर्म किहां छइ ? कह णु जीवदया अनइ तेहहूई जीवदया किहां छइ ? तेह भणी वीतरागनइं वचनइं जीव ओलखाइ', जीवदयानु प्रकार पुण जाणीइ । वीतरागनां वचनइ जि उपरि आस्था नही तउ किम जीव अनइ जीवदया जाणीइ ? ॥ ९९ ॥ [जि.] जगत्त्रयनउ गुरु जे जिन श्रीवीतरागदेव तेहनउं वयणा5 वचन सयलाण जियाण सघलाई जीवहई हितकारक हुइ। ता तिणि कारणि तस्स तेह जिनवचन तणी विराधनाइं आशातनाइं करी कह किमु धर्म हुइ ? अपि तु न हुइ। णु प्रश्ने। कह किमु जीवदयाइ हुइ ? जीवदया पुण न हुई। तिणि जि कारणि जिनवचननी विराधना न करिवी । किं तु पालना करिवी, जिम जीवहूई रूडउं हितक० हुइ ॥ ९९॥ १ जगुगुरु. २ हिइकरणं. ३ मे. कहण. ४ उलखाइ. ५ जु आस्था.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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