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________________ षष्टिशतक प्रकरण . . गयविहवा वि संविहवा सहिआ सम्मत्तरयणराएणं । सम्मत्तरयणरहिआ संते वि धणे दरिद्द त्ति ॥८८॥ ... . [ सो.] गयविहवा० गतविभव लक्ष्मीरहित दालिद्रीइ छता तेह सविहवा सद्रव्य सलक्ष्मीवंत' जाणिवा, जे श्रीसम्यक्त्व5 रूपिइं रत्नराजि महारनि अमूल्यक रनि करी सहित हुई, खरउं सम्यक्त्व पालई । सम्मत्त. जे सम्यक्त्वरूपिइं रत्नि करी रहित छई, जेहनइ हीयइ सम्यक्त्व नथी, मिथ्यात्वीइ जि छइं संते वि० ते लक्ष्मी घणीइ छती दालिंदी जि जाणिवा । दालिद्रीइ जु सम्यक्त्व पालइ तउ आवतइ भवि इंद्रादिक महर्द्धिक देवादिकपदवी प्रामइं । 1०अनइ. चक्रवर्त्यादिक महर्द्धिक जु मिथ्यात्वी हुइ तु आवतइ भवि “नरकतिर्यंचादिक हीनगतिइं ग्यउ हूंतउ दुःखीउ थाइ, महादालिद्री थाइ । इसिंउ भाव । एह ज भणी इम कहिउं श्रीहेमाचार्ये जिनधर्मविनिर्मुक्तो मा भूवं चक्रवर्त्यपि । .... स्याच्चेटोऽपि दरिद्रोऽपि जिनधर्माधिवासितः ॥ 15 [जि.] गतविभवइ निर्द्रव्यई हूंता सविभव सद्रव्य हुई, जे सम्यक्त्वरत्नराज तिणि करी सहित हुइ । एतावता जे पुरुष सम्यक्त्वरूपिउं रत्नराज चिन्तामणि धरई ते पुरुष निर्द्रव्यई सद्रव्य हुई अनइं जे सम्यक्त्व रत्न तिणि करी रहित हुई ते पुरुष संते वि धणे छतई धनि दरिद्री कहीइं। तिणि कारणि सम्यक्त्व मोटउं रत्न ॥ ८८ ॥ २० [मे.] ते पुरुष निर्द्धनइ थका धनवंत जाणिवा जे सम्यक्त्वरूपीइ . रत्नराजिइ सहित हुई। अनइ जे सम्यक्त्वरत्न तिणि करी १ गइविहवा. २ जि. सुविहवा. ३ दरिद्द त्ति. ४ दारिद्रीइ. ५ समृद्ध लक्ष्मीवंत. ६ लीक्ष्मी. ७ दालिद्री. ८ 'जि' नथी. ९ जाणिवी. १० 'इन्द्रादिक महर्द्धिक...आंवतइ भवि' एटलो पाठ बीजी प्रतमांथी पड़ी गयेलो छे. ११ महादारिद्री.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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