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त्रण बालावरोध सहित
छइ । कुलक्रम' कांई नथी करता । इअ० ए बिहुँनई आंतरं ए एवडउं छइ । एकि कुलक्रम करताइ नरक तिर्यचमाहि जाइं छई । बीजा जिनधर्म आराधतां देवलोकि अथवा मोक्ष जि जाई । एवडइ
आंतरइ छतइ ते मूढा मूर्ख युक्ति न्याय न जाणइं । कुलक्रमजिनु कदाग्रह लेई रहई । सूधउ धर्म न करई ॥ ७४ ॥
[जि.] किवि केईएक अजाण कुलक्रमि राता छइं। केईएक जाण जिणवरनइ मति राता। इअ ए आंतरउं पिच्छह जोयउ । जाण-अजाणनउ ए विहरउ देषउ । मूर्ष नायं न याणंति न्याय न जाणइं । जे जिनमति राचई ते युक्तायुक्तविचार जाणी जाण कहावइ अनइ मूढ न्यायरीति न जाणइ । कुलक्रमि रंजीइं । साचउं-कूडउं ना० जाणइं ॥ ७४ ॥
[मे.] केतलाइ जीव कुलक्रमि कुलाचारि राता छई। केतलाइ जीव सूधा जिनवरना मतनइ विषइ राता छइं । जाणई छई : सूधा धर्म लगइ मुक्ति पामीस्यइ । पाडूइ कुलक्रमि संसारमाहि भमीसिइ ।' एवडइ अंतरि छतइ, जोउ, मूर्ख नाणिउं जे न जाणइं । कुलक्रमनउ15 कदाग्रहु न मूंकई ॥ ७४ ॥
[जि.] अथ अजाणनी वात बिहुँ गाथाइं करी कहइ । संगो वि जाण अहिओ तेसिं धम्माइं जे पकुव्वंति।। मुत्तूण चोरसंगं करंति ते चोरिअं पावा ॥७॥ - [सो.] जीहं मिथ्यात्त्वी दर्शनीनी संगतिइ अहितकारिणी20 करिवा' नावई । पुण तेहनउ उपदेसिउ जे धर्म ते करई । मुत्तूण.
१ 'कुलक्रम...जाई छई' एटलो पाठ सो.नी बीजी प्रतमाथी पडी गयेलो छे. २ मोक्षि. ३ जि. मोत्तण. ४ जि. करेंति, मे. करिति. ५ कारिवा. ६ तेनु. ...