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________________ ११२ श्रामण्योपनिषद् संजमु विणु णर-भव सयलु सुण्णु, संजमु विणु दुग्गइ जि उववण्णु । संजमु विणु घडिय म इक्क जाउ, संजमु विणु विहलिय अत्थि आउ ॥७॥ घत्ता इह-भवि पर-भवि संजमु सरणु हुज्जउ जिणणाहें भणिउ । दुग्गइ-सर-सोसण-खर-किरणोवम जेण भवालि विसमु हणिउ ॥८॥ ॐ हीं परब्रह्मणे उत्तम-संयमधर्मांगाय पूर्णार्घ्य निर्वामीति स्वाहा । तपोधर्मः कामेन्द्रियदमं सारं तपः कर्मारिनाशनम् । पूजया परया भक्त्या पूजयामि तदाप्तये ॥१॥ ॐ हीं परब्रह्मणे उत्तमतपोधर्मांगाय नम: जलाद्यर्थ्य निर्वपामीति स्वाहा । णर-भव पावेप्पिणु तच्च मुणेप्पिणु खंचिवि पंचिंदिय समणु । णिव्वेउ पमंडिवि संगइ छंडिवि तउ किज्जइ जाएवि वणु ॥२॥ तं तउ जहिं परिगहु छंडिज्जइ, तं तउ जहिं मयणु जि खंडिज्जइ । तं तउ जहिं णग्गत्तणु दीसइ, तं तउ जहिं गिरिकंदरि णिवसइ ॥३॥ तं तउ जहिं उवसग्ग सहिज्जइ, तं तउ जहिं रायाई जिणिज्जइ । तं तउ जहिं भिक्खइ भुंजिज्जइ, सावय-गेह कालि णिवसिज्जइ ॥४॥
SR No.022076
Book TitleShramanyopnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2010
Total Pages144
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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